- वीरों की धरती, क्रांति का शहर चौरी-चौरा की ऐतिहासिकता किसी से छिपी नहीं है
चौरी-चौरा: प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां की जमीन पुरातत्विक दृष्टि से भी अपना अहम स्थान रखती है. इस विषय में समाजवादी पार्टी के प्रखर नेता
काली शंकर ने क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी नरसिंह त्यागी को मांग पत्र सौंपते हुए चिन्हित स्थलों के विषय में जानकारी दिया,
जिसके बाद पुरातत्व विभाग की टीम के साथ जाकर चौरी-चौरा विधानसभा के अंतर्गत ग्राम राजधानी, डीहघाट और ब्रह्मपुर में खोजे गए ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के स्थानों का सर्वेक्षण किया.
लगभग 4 महीने पूर्व डीहघाट में काली शंकर द्वारा खोजे गए टीले का सर्वेक्षण करते हुए पुरातत्व अधिकारी ने बताया कि-
“यह एक कुषाण कालीन स्तूप है जो लगभग 2000 वर्ष से भी प्राचीन है तथा टीले की सतह से उत्तरी कृष्ण मार्जित मृदभांड (NBPW) काल
से लेकर मध्यकाल तक के पूरावशेष प्राप्त होते हैं जो लगभग 2600 वर्ष तक प्राचीन है. डीहघाट का पूरा स्थल लगभग डेढ़ से दो किलोमीटर में फैला हुआ है.
राजधानी गांव में निर्धारित स्थान पर सर्वेक्षण के दौरान पुरातत्व अधिकारी ने बताया कि राजधानी पुरास्थल लगभग 3 किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है.
इस क्षेत्र से पकी हुई ईटों के टुकड़े तथा पात्र अवशेष प्राप्त हुए हैं. यहां प्राप्त ईटों की माप 26×20×5 सेंटीमीटर है.
टीले की सतह से कुषाण काल से लेकर के मध्यकाल तक के पूरावशेष मिले हैं. वर्तमान समय में स्थानीय व्यक्तियों द्वारा टीले को समतल कर कृषि कार्य किया जा रहा है.
हमारे द्वारा ब्रह्मपुर मे बताए गए स्थान पर ब्रह्मपुर के पश्चिम स्थित कुएं जो पक्की ईंटों से निर्मित जिनकी टोका माप 25×20×5 सेंटीमीटर है,
जो गुप्तकालीन अर्थात 1700 वर्ष तक प्राचीन हैं. ब्रह्मपुर स्थित टीला एक से डेढ़ किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है.
टीले की सतह से कुषाण कालीन पात्रअवशेष व पकी हुई ईटों के टुकड़े प्राप्त होते हैं. ईटों की माप 28×20×05 है. स्थानीय किसानों द्वारा टीले को काटकर अब कृषि कार्य किया जा रहा है.
कालीशंकर ने सरकार से मांग किया है कि इस क्षेत्र का गहन उत्खनन होना चाहिए क्योंकि जो ऐतिहासिक तथ्य सामने आ रहे हैं और पूर्व में जो प्रसिद्ध पुरातत्वविदो ने
अपने सर्वेक्षण लेखों में वर्णन किया है, उससे यह सिद्ध होता है की चंद्रगुप्त मौर्य ने यहीं जन्म लिया था और गौतम बुद्ध का आग्नेय स्तूप यहीं पर है.