देशरत्न, संविधान निर्माता ‘बाबा साहब’ भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर शत शत नमन

(सईद आलम खान की कलम से)

समाज में कुछ ऐसे भी व्यक्तित्वों ने जन्म लिया जिनके कर कमलों से ऐसी अनेक अद्भुत चीजों का उद्घाटन हो गया जिनके विषय में किसी ने सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है.

कौन भूल सकता है छुआछूत, जातिवाद, लैंगिक भेदभाव, इंसान को इंसान ना समझना, जानवर से भी बदतर दशा इत्यादि को जिन्हें धार्मिकता की आड़ में छिपाकर असंख्य के लोगों पर जुल्म ढाए गए.

किन्तु धन्य है वह मां जिसने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जैसे रत्न को जना. आज देश ही नहीं दुनिया के इतिहास के पन्नों में उनका नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज है.

जी हां, आज हम बात कर रहे हैं भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार डॉ भीमराव बाबा साहब अंबेडकर के 65 वीं पुण्यतिथि की.

आज ही के दिन यानी 6 दिसंबर, 1956 को विधि वेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिक तथा महान समाज सुधारक भीमराव अंबेडकर ने इस मृत्युलोक को छोड़ दिया था.

भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद तथा छुआछूत के दंश को उन्होंने इस कदर झेला था कि खुद से वादा कर लिया था कि मैं जन्म से तो हिंदू पैदा हो गया हूं किंतु मृत्यु इस धर्म में नहीं होगी.

बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर इन्होंने सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध जो अभियान चलाया उसी का परिणाम था कि श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों

को न केवल वह सुरक्षित कर पाने में सफल हुए बल्कि भारत के प्रथम विधि और न्याय मंत्री के रूप में देश के सभी लोगों में समानता का ऐसा बीजारोपण किया कि हम उन्हीं के बनाए हुए सिद्धांतों पर अपने देश का शासन चला रहे हैं.

चुंकि बाबा साहब एक बौद्ध गुरु थे इसीलिए उनकी पुण्यतिथि को ‘महापरिनिर्वाण’ शब्द के रूप में अपनाया जाता है.

पूरे भारत के लाखों लोग उनकी समाधि पर जिसे चैत्य भूमि कहा जाता है, पर 1 दिसंबर से ही लोग इकट्ठा होना प्रारंभ कर देते हैं तथा

यहां बाबा साहब के अस्थि कलश तथा प्रतिमा को श्रद्धांजलि देते हैं. निश्चित तौर पर यह बड़े गर्व का विषय है कि उस महान आत्मा को हम

पूरी निष्ठा और सम्मान के साथ अपनाए हुए हैं तथा प्रत्येक वर्ष उनकी जन्मतिथि से लेकर पुण्यतिथि तक को एक उत्सव की तरह मना कर समाज में समानता और एकता का संदेश देते हैं.

Leave a Comment

Translate »
error: Content is protected !!