BY–THE FIRE TEAM
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि यदि उसने यह पाया कि कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के लिये साक्ष्यों को गढ़ा गया है और ऐसी सामग्री की जांच की आवश्यकता है तो वह विशेष जांच दल से जांच का आदेश दे सकता है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने इन पांच कार्यकर्ताओं की नजरबंदी की अवधि 19 सितंबर तक के लिये बढ़ा दी। पीठ ने कहा कि वह दो दिन बाद इतिहासकार रोमिला थापर और चार अन्य की याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई करेगी।
न्यायालय कोरेगांव-भीमा हिंसा कांड में दर्ज प्राथमिकी की जांच के दौरान पांच कार्यकर्ताओं वरवरा राव, अरूण फरेरा, वर्नेन गोन्साल्विज, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की 28 अगस्त को गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था।
पीठ ने कहा, ‘‘प्रत्येक आपराधिक जांच आरोपों पर आधारित होती है और हमें देखना है कि क्या इनमें कोई साक्ष्य हैं। सबसे पहले तो हमें सामग्री पर गौर करना होगा। यदि हमने पाया कि सामग्री गढ़ी गयी है तो हम विशेष जांच दल गठित करेंगे। हम उन्हें (महाराष्ट्र पुलिस) सुने बगैर और सामग्री पर गौर किये बगैर उनके खिलाफ निर्णय कैसे कर सकते हैं। हम जांच एजेन्सी के तथ्य देंखेंगे।’’
इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही केन्द्र और महाराष्ट्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल मनिन्दर सिंह और तुषार मेहता ने थापर और अन्य की याचिका का विरोध किया। उनका कहना था कि ऐसी कौन सी सामग्री थी जिसने यह अहसास पैदा किया कि निचली न्यायिक अदालतें आरोपियों को नहीं सुनेंगी।
इस पर पीठ ने कहा कि उसने उनकी स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुये ही उन्हें संरक्षण प्रदान किया है और यह निचली अदालतों में उनकी याचिकाओं का निबटारा होने तक जारी रहेगी।
पीठ ने कहा, ‘‘हम स्वतंत्रता के आधार पर मामले पर विचार करते हैं। स्वतंत्र जांच जैसे मुद्दे बाद के चरण में आते है। आरोपियों को नीचे से राहत प्राप्त करने दें। इस बीच, हमारा अंतरिम आदेश जारी रह सकता है।
सिंह ने कहा, ‘‘जहां तक नक्सलवाद की समस्या का संबंध है तो यह अधिक बड़ी समस्या हो रही है और यह पूरे देश में फैल रही है। इसी वजह से हम इसमें हस्तक्षेप कर रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि यह एक खतरनाक परंपरा स्थापित करेगी और ऐसा मामला, जिस पर निचली अदालतों ने विचार नहीं किया है और ऐसा कौन सा पहलू है जिसने उनके दिमाग में यह संदेह पैदा किया कि निचले न्यायिक मंच उन्हें नहीं सुनेंगें
मेहता ने कहा कि गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बारे में याचिकाकर्ताओं की अपनी सोच से इतर उनके खिलाफ पर्याप्त सामग्री है। उन्होंने कहा कि यह असहमति नहीं है। यह गंभीर अपराध है। आप अभी शायद संतुष्ट नहीं हों परंतु लैपटाप, कम्प्यूटर, हार्ड डिस्क से मिले साक्ष्य से पता चलता है कि वे संलिप्त थे।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने केन्द्र और महाराष्ट्र की आपत्तियों को ‘किताबी’ करार देते हुये कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा इसका संज्ञान लिये जाने के बाद से निचली अदालत में कुछ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि उन्हें अपना मामला सामने रखने दिया जाये क्योंकि यह न्यायालय के अंत:करण को भी झकझोर देगा।
(पीटीआई-भाषा)