21 राजनीतिक दलों के प्रतिरोध के बावजूद पीएम मोदी ने किया नए संसद भवन का उद्घाटन

मिली जानकारी के मुताबिक 21 राजनीतिक दलों जैसे-आम आदमी पार्टी, टीएमसी, कांग्रेस आदि के लगातार प्रतिरोध के बावजूद पीएम नरेंद्र मोदी ने

नए संसद भवन का उद्घाटन संपूर्ण धार्मिक विधि-विधानों द्वारा कर दिया. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के केबिनेट के मंत्रियों समेत लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी मौजूद रहे.

अधीनम संतो ने मोदी को सैंगोल सौंपा जिसे संसद भवन में स्थापित कर दिया गया है. नवीन संसद का उद्घाटन करने के बाद पार्लियामेंट परिसर में

सर्व धर्म सभा का भी आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न धर्मों के विद्वानों तथा गुरुजनों ने अपने धर्म के विषय में विचार रखे.

नए संसद भवन के उद्घाटन के बाद जिन श्रमिकों ने इस भवन को बनाया था, उन्हें प्रधानमंत्री ने सम्मानित भी किया.

अधीनम जैसे प्रतिक चिन्ह को संसद भवन में स्थापित करने को लेकर हुई आलोचनाओं को भी मोदी ने दरकिनार कर दिया.

तमिलनाडु के अलग-अलग मतों से आए अधीनम संतो ने हवन-पूजा कराया. खासियत यह रही है कि संसद भवन के निर्माण के लिए देश के अलग-अलग

हिस्सों से अनोखी सामग्रियों को भी जुटाया गया है जैसे नागपुर से सागौन की लकड़ी, राजस्थान के सरमथुरा से सेंडस्टोन, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर की कालीन,

अगरतला से बांस की लकड़ी तथा महाराष्ट्र के औरंगाबाद और जयपुर से अशोक प्रतीक को मंगाया गया है. केंद्रीय मंत्री सरबानंद सोनोवाल भवन

के उद्घाटन को लेकर कहा कि “यह एक ऐतिहासिक दिन है जब प्रधानमंत्री देश को एक नया तथा आधुनिक संसद भवन समर्पित करेंगे.

मैं सभी भारतीयों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए पीएम का आभार व्यक्त करता हूं. हमें इस पल पर गर्व होना चाहिए.”

पीएम मोदी ने नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के मौके पर ₹75 का नया सिक्का भी जारी किया है जिसमें नए संसद भवन का चित्र अंकित है.

इसके नीचे हिंदी में संसद संपूर्ण तथा अंग्रेजी में पार्लियामेंट कॉन्प्लेक्स लिखा गया है. अशोक चिन्ह भी अंकित है.

विपक्ष में बैठे 21 राजनीतिक दलों ने संयुक्त बयान में कहा है कि राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए नए संसद भवन का उद्घाटन करना घोर अपमान है.

यह हमारे लोकतंत्र पर सीधा हमला है, राष्ट्रपति के बिना संसद कार्य नहीं कर सकती है. फिर भी प्रधानमंत्री ने उनके बिना संसद भवन का उद्घाटन करने का निर्णय लिया है.

यह अशोभनीय कृत्य राष्ट्रपति के पद का सीधा अपमान है तथा संविधान की मूल भावना का भी उल्लंघन करता है.

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