- अयोध्या और राम की आड़ में ह्यूमैनिटी, डेमोक्रेसी, यूनिटी, संविधान न तोड़ जाए. 200 वर्षों की ब्रिटिश गुलामी एवं असंख्य की फांसी के बाद हमें लोकतंत्र, ‘संविधान’ हासिल हुआ है
अयोध्या: एक तरफ जहां देश नव वर्ष 2024 में राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर उत्साह में डूबा हुआ है, वहीं ‘पूर्वांचल के गांधी’ कहे जाने वाले डॉ संपूर्णानंद मल्ल ने
इस संपूर्ण कृत्य को आड़े हाथों लेते हुए अनेक प्रश्न खड़ा कर दिए हैं. इन्होंने कहा है कि पत्थर में प्राण डालना, 22 लाख दीप जलाना अवैज्ञानिक और असंवैधानिक है.
संविधान भाग IV A(h) नागरिकों के मौलिक कर्तव्य में “टू डेवेलप द साइंटिफिक टेंपर ह्यूमैनिटी एंड स्पिरिटी ऑफ इंक्वायरी एंड रिफॉर्म”
माना कि नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्य बाध्यकारी नहीं है, परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि साइंटिफिक टेंपर ध्वस्त कर अंधविश्वास एवं पाखंड का पौध रोपा जाए.
प्रधानमंत्री जी ‘भारत का लंगड़ा लोकतंत्र’ जो जमीन पर घसीट’ रहा है, अंतिम सांस ले रहा है, इसे जीवित रहने दीजिए.
सत्ता की भूख मिटाने के लिए भारत की आत्मा ‘एकता एवं शांति’ को हिंदू-मुस्लिम नफरत के बाण से मत बेधिये.
भारत बुद्ध, कबीर, नानक, राम, रहीम, सावित्रीबाई, विवेकानंद, गांधी, एपीजे अब्दुल कलाम का देश है. आप भारत के प्रधानमंत्री हैं, हिंदू ‘अयोध्या’ या राम के प्रधानमंत्री नहीं हैं.
“राष्ट्र धर्म” आपका धर्म है, रिलिजन ‘पंथ’ आपका अपना निजी है. राम मंदिर अपने घर में बनवाइए, प्राण डालिए, प्राण निकालिए.
सार्वजनिक स्थलों पर इस तरह का कार्य “धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की हत्या है.” राज्य द्वारा सभी धर्म का समान संरक्षण के अधिकार को शीशे की तरह तोड़ दिया गया है.
पं. राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खान, रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी की शहादत दिवस 19 दिसंबर को पं. बिस्मिल के फांसी घर गोरखपुर जेल से
एक सत्याग्रह उपरांत मैंने आपको एक ज्ञापन जिला अधिकारी की ओर से भेजा था जिसमें मैंने यह पूछा था कि जब “एक अयोध्या, एक राम, एक आत्मा, एक राष्ट्र,” फिर अयोध्या में 22 लाख दिए क्यों?
आज से 450 वर्ष पूर्व औरंगज़ेब ने मंदिरों को तोड़ा मस्जिद बनवाई यह सब काम उसने हिंदुस्तान में लूटपाट मचाकर एवं विभिन्न तरीके के टैक्स लगाकर किया.
अपने उत्कर्ष पर उसका साम्राज्य कंधार से असम तक फैला था, 1707 में जब वह मरा तब उसका साम्राज्य बालू की “भीत” की तरह गिर गया.
इतिहास उसे क्रूर, तानाशाह, असहिष्णु, अत्याचारी शासक के रूप में अपने पन्नों में दर्ज कर लिया है. 13वीं, 14वीं और 15वीं सदी में यूरोप में चर्च के पादरी ‘पोप मुक्ति पत्र बांट रहे थे.
700 से 800 वर्ष बाद आपने भारत को मध्य युग में पहुंचा दिया, भारत में 18-19वीं सदी में पुनर्जागरण की हवा चली जिसमें अंधविश्वास एवं पाखंड को खारिज किया.
मानवतावाद एवं विज्ञानवाद को केंद्र में किया, ऐसे महापुरुषों में विवेकानंद, राजा राम मोहन रॉय, दयानंद सरस्वती, ज्योतिबा फुले,
सावित्रीबाई ई वी रामास्वामी जैसे समाज वैज्ञानिक एवं महापुरुष हुए. प्रधानमंत्री जी रामराज का अर्थ है- समता, भयरहित, न्यायप्रिय, शासन-इसे आप तोड़ रहे हैं.
लोगों में भय पैदा हो रहा है-जीवन एवं पेट की सुरक्षा को लेकर क्योंकि अयोध्या में जो हजारों करोड़ मिट्टी में दफन की जा रही है.
वह जीएसटी, टोल टैक्स, डीजल, पेट्रोल, सीएनजी, घरेलू गैस की कीमत बढ़ाकर वसूले गए पैसे से की जा रही है. जिस मुल्क में 80 करोड़ गरीब 5 किलो अनाज में
अपने जीवन की तलाश कर रहे हैं, कुपोषण के शिकार हैं, जिनकी तरकारी तेल में नहीं पानी में बनती है, जो रोटी दाल से नहीं पानी और नमक से खाते हैं.
उस देश के प्रधानमंत्री, बुद्ध एवं गांधी के इस महान मुल्क को अंधविश्वास, पाखंड और वैज्ञानिकता में झोंक रहे हैं, केवल सत्ता की भूख मिटाने के लिए.
भारत की डेमोक्रेसी, मनुष्यता, संविधान सबको दफन करना चाहते हैं, परंतु सत्ता से बाहर रहना उन्हें मंजूर नहीं है. प्रधानमंत्री जी अयोध्या एवं राम को हर हिंदुस्तानी के दिल में
बसे रहने दीजिए, यह क्या कर रहे हैं? गांधी को गोडसे ने जब गोली मारी थी तो गांधी के मुंह से ही राम शब्द उच्चरित हुआ था.
गांधी ने अयोध्या में राम की मंदिर पूजा नहीं की लेकिन राम उनके हृदय में थे. इसलिए मैं कहता हूं कि अपने सारे कार्यक्रम निरस्त करिए.
सत्य, अहिंसा की पूरी ताकत से इसका विरोध सड़क पर करूंगा, भगत सिंह गांधी और अंबेडकर की तलाश करूंगा.