जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस और जम्मू-कश्मीर में चुनाव का इतिहास

कश्मीर रियासत में मुस्लिम बहुसंख्यक थे जो मूलतः किसान थे परंतु महाराजा हिन्दू डोगरा शासक थे. अच्छे-अच्छे ओहदे गिने चुने हिन्दू समुदाय के पंडितों के पास थे। मुसलमान बहुत गरीब थे. 1931 से यहाँ मुसलमान कृषकों के एक समूह ने आंदोलन की शुरूआत की जिनमें शेख अब्दुल्ला भी सम्मिलित थे. 1931 में राजनीतिक सुधारों की … Read more

जनवरी महीने की आठ तारीख जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता हूँ: हिमांशु कुमार

इसी दिन 2009 में छत्तीसगढ़ ज़िले में एक ऐसी घटना घटित हुई थी जो मेरे मन से कभी नहीं मिटेगी. ये तब की बात है जब मैं दंतेवाड़ा में ही काम करता था. सरकार चाहती थी कि आदिवासी गांव खाली कर के भाग जाएँ ताकि आदिवासियों की ज़मीने अमीर उद्योगपतियों को दी जा सकें. सरकार … Read more

पुलवामा कांड की कहानी बिहार सरकार के मंत्री आलोक मेहता की जुबानी

शासकवर्ग के आपसी अंतर्विरोध से कभी-कभी ऐसा सच भी सामने आ जाता है जिससे इस वर्ग के निर्लज्ज, षड्यंत्रकारी व शैतानी चेहरे से नक़ाब उतर जाता है. लम्बे समय से भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला रही जेडीयू को अभी तक भाजपा के काले कारनामों से कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि चुप रहने से ही … Read more

दुनिया में अजेय ‘रुस्तम-ए-हिंद’ गामा पहलवान का कुश्ती कैरियर यहाँ पढ़ें…

गामा पहलवान (उर्दू: گاما پھلوان) का असली नाम ग़ुलाम मुहम्मद बख्श (गुर्जर) था. दुनिया में अजेय गामा पहलवान का जन्म 22 मई, 1878 ई० को अमृतसर (पंजाब) के जब्बोवाल गाँव के एक कश्मीरी गुर्जर परिवार में हुआ था, हालांकि इनके जन्म को लेकर विवाद है. इनके बचपन का नाम ग़ुलाम मुहम्मद था. इन्होंने 10 वर्ष … Read more

भारत में कई पढ़े-लिखे लोग भी निजीकरण को बहुत हल्के में ले रहे हैं…

निजीकरण एक “गुलामी का पेंच” है जो धीरे-धीरे आपका गला घोंट देगा देश में जिस गति से सरकारी संस्थानों का ‘निजीकरण’ किया जा रहा है उसको देखकर ऐसा लगता है कि अब वह समय दूर नहीं कि जब इतिहास पढ़ाया जाएगा कि भारत की आखिरी सरकारी ट्रेन, आखिरी सरकारी बस, आखिरी सरकारी बिजली कंपनी, आखिरी … Read more

पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा दिया गया चुनाव व लोकतन्त्र क्या असल में लोकतांत्रिक है?

क्या उंगली में स्याही लगाकर और मोहरे बदलकर ख़ुशफ़हमी में रहना काफ़ी है या फिर सच्चे जनतंत्र की चाभी कहीं और ढूँढने की ज़रूरत है? कहने को कथित पूँजीवादी जनवाद में भी लोगों को हर 4-5 साल पर चुनाव द्वारा सरकार बदलने का मौक़ा दिया जाता है पर क्या सही अर्थों में चुनाव के ज़रिये … Read more

जाति वयवस्था को लेकर क्या सोचते थे महान क्रान्तिकारी भगत सिंह?

हिंदू धर्म के भीतर जाति और उससे जुड़ी छूत-अछूत की समस्या पर फुले-आंबेडकर की शैली में तीखी टिप्पणी करते हुए भगत सिंह लिखते हैं- “कुत्ता हमारी गोद में बैठ सकता है. हमारी रसोई में नि:संग फिरता है लेकिन एक इंसान का हमसे स्पर्श हो जाए तो बस धर्म भ्रष्ट हो जाता है.” अछूत समस्या पर … Read more

एक औरत ने क्या खूब कहा है? इसमें ‘स्त्री’ की सम्पूर्ण पीड़ा समाहित है

एक औरत ने क्या खूब कहा? छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी, माँ हमेशा झिडकती, चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते. थोड़ी बड़ी हुई जब , थोड़ा ज्यादा बोलने पर, माँ फटकार लगाती चुप रहो ! बड़ी हों रही हों. जवान हुई जब, थोड़ा भी बोलने पर, माँ जोर से डपटती चुप रहो, … Read more

पूंजीवादी लोकतंत्र ही पूंजीपति वर्ग की तानाशाही को दिखाता है…आइये समझें कैसे?

कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी लोकतंत्र को पूंजीपति वर्ग की तानाशाही कहा है क्योंकि पूंजीवादी लोकतंत्र में पूंजीपति वर्ग जो चाहता है वही होता है. वही चुनाव लड़ता है, चुनाव जीतता है, चुनाव हारता है, अपनी सरकार बनाता है तथा दिखावे के लिए उसका एक गुट विपक्ष में बैठता है. शेष जनता तो सिर्फ कहने के … Read more

कांग्रेस की गलती और भाजपा द्वारा सुधार, पढ़िएगा जरूर

नेहरू जी की सरकार ने रिटायर्ड कर्मचारियों के लिए आजीवन पेंशन का प्रावधान किया था. किन्तु पेंशनधारी अटल जी के समर्थन में आए और अटल जी की सरकार ने पेंशन समाप्त कर दी. अटल जी समझ गए थे कि यह पेंशनधारी जब नेहरू की कांग्रेस के ना हुए तो मेरे क्या होंगे, इसलिए अटल जी ने … Read more

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