ये बायकाट गैंग की शरारत नहीं, तो और क्या है? पहले कम्युनिस्ट बोले कि अयोध्या में रामलला का गृह प्रवेश कम, मोदी जी का अवतारों की सूची में प्रवेश ज्यादा हो रहा है; हमें नहीं देखना.
फिर कांग्रेस वाले कहने लगे कि अयोध्या में हमें तो संघ-भाजपा का ईवेंट होता ही ज्यादा दीख रहा है; हमें नहीं देखना ये तमाशा,
और अब चार-चार शंकराचार्य भी कह रहे हैं कि जो हो रहा है, बाकी कुछ भी हो, धार्मिक अनुष्ठान नहीं है; वे अधार्मिक तमाशा करें और हम देख-देखकर तालियां बजाएं, ये नहीं होगा.
हम नहीं जाते ताली बजाने, कम्युनिस्टों से लेकर शंकराचार्यों तक एक जैसे सुर; यह बायकॉट गैंग नहीं, तो और क्या है?
मोदी विरोधियों की यही प्राब्लम है- मोदी जी कुछ भी करें, ये चैन से बैठकर देख भी नहीं सकते हैं और देख-देखकर तालियां बजाने का तो सवाल ही नहीं उठता है.
मोदी जी के लिए तालियां बजाने में तो इनकी इज्जत घटती है. उल्टे, जब देखो तब विरोध करने के लिए ही खड़े हो जाते हैं.
मसलन मोदी जी ने तीन कृषि कानून बनाए-विरोधियों ने क्या किया; विरोध! किसानों को उकसा दिया, पट्ठे कानून वापस करा के माने.
मोदी जी ने सीएए कानून बनाया-विरोधियों ने उसका भी विरोध किया और मोदी जी चार साल बाद भी लागू नहीं करा पाए हैं.
मोदी जी ने नयी संसद बनवायी, नयी संसद में सेंगोल की प्राण प्रतिष्ठा करायी; तब भी विरोधियों ने विरोध किया और तो और, मोदी जी ने नयी संसद में,
विषय सबसे गुप्त रखकर, विशेष सत्र बुलाने की नयी रीति चलायी, तब भी विरोधियों ने विरोध ही किया. अब मोदी जी रामलला के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करा रहे हैं,
तब भी विरोधी, विरोध करने, बल्कि बायकाट करने से बाज नहीं आ रहे हैं. मोदी जी तो राम को लाए हैं और विरोधी, मोदी जी के आने पर ही सवाल उठा रहे हैं.
दर्शक बनने से इंकार कर रहे हैं, सो ऊपर से- यह रामलला विरोध, हिंदू विरोध वगैरह नहीं, तो और क्या है?
खैर! शंकराचार्य नहीं देखने जाएंगे, कांग्रेसी और वामी देखकर तालियां नहीं बजाएंगे, तब भी मोदी जी रामलला को लेकर आएंगे.
उंगली पकड़ाकर रामलला को लाएंगेे, तभी तो राम के नाम पर वोट पाएंगे वर्ना बेरोजगारी, महंगाई वगैरह के चक्कर में अगर वोटर ही बायकाट गैंग मेें शामिल हो गए तो!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं)