Gorakhpur: जाने माने पर्यावरणविद, समाजसेवी, पूर्वाञ्चल के गाँधी कहे जाने वाले डॉ सम्पूर्णानन्द मल्ल ने राष्ट्रपति मुर्मू को पत्र लिखकर बताया है कि देश में व्याप्त महंगाई अमीरों के लिए फ़ैशन है जबकि गरीबों के लिए अपराध के समान है.
जीएसटी पर हमलावर होते हुए कहा कि यह ऐसा क्रूर कर है जिसे कंगाल भी देता है जो एक रोटी खरीदने दुकान पर जाता है.
यह कर मरते व्यक्ति की अंतिम रोटी से अपना हिस्सा छीन लेता है. चावल, आटा, गेहूं, दाल, तेल, चीनी, नमक, दवा, हवा, पानी जो जीवन है, उस पर भी जीएसटी लगता है.
लगभग 100 करोड़ लोगों के लिए जीएसटी क्राइम है. मुझे विश्वास नहीं होता कि ऐसा कर 788 सांसदों की जानकारी में बन सकता है?
भारत में 1 जुलाई, 2017 के पहले जीएसटी नहीं था. सदन बुलाकर इस काले कानून को दफन करें या इसकी दर 16:30 प्रतिशत करें.
महंगाई ने संविधान के मूल ढांचे पर प्रहार किया है इसलिए महंगाई तोड़ना जरूरी है. ‘कर’ का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह हमारा जीवन छीनता है.
चूँकि जीवन हमारा मौलिक अधिकार (अनु21) है किन्तु एक्सेसिव टैक्सेशन से लोग मरे हैं, कुपोषित हुए हैं. वहीं संविधान की ओढ़नी ओढ़ कर सरकार सामने से हमारी पेट का हिस्सा छीन रही है.
28% जीएसटी अपराध है क्योंकि सामान्य रूप से भारत में “ट्रेडिशनल टैक्स रेट” 1/6 (छठवा) यानी लगभग सवा सोलह प्रतिशत था.
ऐसा काला कानून दुनिया के किसी देश में नहीं है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि मजदूर अपना ‘श्रम’ बाजार में बेचता है और जो मजदूरी पाता है उससे अपने बच्चों, अपने वृद्ध मां-बाप का मुश्किल से पेट भर पाता है.
हमने वोट इसलिए नहीं दिया कि सेवा की शपथ लेकर हमें टैक्स की जंजीरों में जकड़ दें. किसने कहा कि हमारे ऊपर जीएसटी और टोल टैक्स लगा दीजिए?
हमारे ऊपर आप इस तरीके से कर लगा रहे हैं जैसे कोई अत्याचारी राजा या कोई लूटेरा हो. आज भारत को शराब की मंडी में बदल दिया गया है.
हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारा देश बुद्ध, कबीर, नानक, रहीम, विवेकानंद, गांधी का है. महान वैज्ञानिक अनुशासन के प्रतीक एपीजे अब्दुल कलाम,
महान अर्थशास्त्री एवं अनुशासन के प्रतीक मनमोहन सिंह, उद्योगपति अनुशासन रूप रतन जी टाटा, महान मानवीय न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमन का देश है.
जहर बेचकर विकास? आजादी के 75वे वर्ष में अमृत महोत्सव मना रहे हैं और जनता को जहर पिला रहे हैं. जितना प्रचंड आंदोलन अंग्रेजों को भगाने के लिए हुआ था
उतना ही प्रचंड आंदोलन भारत में शराब बंदी को लेकर था. आपको बता दें कि डॉ मल्ल ने राष्ट्रपति, वित्तमंत्री, रेलमंत्री, स्पीकर को दर्जनों पत्र एवं ज्ञापन सौंपे हैं
किन्तु किसी भी पत्र का उत्तर नहीं मिला है. ऐसे में यह स्वाभाविक सा प्रश्न है कि देश में चल रहे गण और संविधान की मूल भावना आखिर कहाँ है.
एक विद्वान व्यक्ति के प्रश्नों का जवाब नहीं मिल रहा है तो आम जनता जो निरक्षर तथा अपने अधिकारों से अनजान है, उसका क्या होगा.?