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भई कोई कुछ भी कहे, निर्मला सीतारमण को ऐसा नहीं करना चाहिए था. चुनाव नहीं लडऩा था, नहीं लड़़तीं. न आंध्र से और न तमिलनाडु से, कहीं से भी नहीं लड़तीं.

मोदी जी का आशीर्वाद था, फिर चिंता की क्या बात थी? पर यह नहीं कहना चाहिए था कि पब्लिक से वोट वाला चुनाव नहीं लड़ेेंगी, क्योंकि उसके लिए उनके पास पैसा ही नहीं है.

चलताऊ तरीके से कहीं कहने को कह भी देतीं, पर कम से कम एक मीडिया संस्थान के सम्मेलन में तो ऐसा किसी भी तरह से नहीं कहना था,

जहां खुशामद के चक्कर में ही सही, उनका एक-एक शब्द हजार-हजार बार, तब तक सुनाया जाना था, जब तक पब्लिक उसे ध्रुव सत्य न मान ले.

नतीजा यह कि लोग अब अपनी डैमोक्रेसी की मम्मी जी के बारे में ही सौ तरह की बातें बना रहे हैं, और तो और, कई तो बहुत भोले बनकर

पूछ रहे हैं कि क्या वाकई डैमोक्रेसी की मम्मी जी के यहां चुनाव लड़ना इतना महंगा हो गया है कि पांच साल की वित्त मंत्री को अपना होना

साबित करने के लिए यह कहना पड़ता है कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे ही नहीं हैं. उन्होंने खाया होता तो क्या उनके पास चुनाव लडऩे के लिए पैसे नहीं होते?

हद्द तो यह है कि अब लोग पूछ रहे हैं कि निम्मो ताई क्या यह कहने की कोशिश कर रही हैं कि मोदी जी के जो सिपहसालार चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं,

बल्कि चुनाव लड़ने के लिए, दूसरे दावेदारों से जंग तक लड़ने के लिए तैयार हैं, उनके पास क्या उस तरह का पैसा है, जैसा पैसा निर्मला तार्ई पास नहीं है?

क्या कहना चाहती हैं निम्मो ताई, मोदी जी ने जो करीब 440 खड़े किए हैं, सब के सब भ्रष्ट हैं? वर्ना उनके पास चुनाव लड़ने के लिए उस तरह का पैसा कहां से आया,

जिस तरह का पैसा निर्मला जी के पास नहीं है. इन लड़ने वालों ने तो नहीं कहा कि उनके पास पैसा नहीं है, सिर्फ निर्मला जी ने ही कहा.

तो क्या अकेेली निर्मला जी केे पास ही वैसा पैसा नहीं है? यानी क्या एक वही आम आदमिन और ईमानदार और इसलिए, चुनाव लडऩे में असमर्थ हैं?

जो सत्ताधारी पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ रहे हैं, सब के सब वैसा पैसा बनाने वाले हैं. मोदी जी भी!और यह सिर्फ भगवा पार्टी में ही अपना आंचल दूसरे नेताओं से साफ बताने की बात होती,

तब तो फिर भी गनीमत थी. निर्मला ताई की बात ने तो बेचारी भगवा पार्टी के दुश्मनों को भी मौका दे दिया है. कह रहे हैं कि अब तो सारी दुनिया को

पता चल गया है कि भगवा पार्टी ने पिछले पांच साल में अरबपतियों से ही 12 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का चंदा वसूला है.

भगवा पार्टी के खाते में भी पांच हजार करोड़ रुपए से ज्यादा जमा बताए जाते हैं. अगर इस सब के बावजूद, निर्मला सीतारमण के पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं है तो,

चुनावी बांंड के नाम पर और उसके बिना भी, कारपोरेटों से वसूल किया गया बारह हजार करोड़ रूपये से ज्यादा कहां गया?

माना कि ज्यादातर पैसा मोदी जी की कृपा से आया है, मगर क्या सारा पैसा मोदी जी की छवि बनाने में ही जाएगा या और भी किसी को उसमें से कुछ पैसा दिया जाएगा.

चुनावी बांड योजना सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दी तो इसका मतलब यह तो नहीं कि भगवा पार्टी के खजाने में से किसी निम्मो ताई को चुनाव लड़ने के लिए पैसा ही नहीं दिया जाएगा.

कमाल यह है कि एक तरफ तो जल बिन मीन प्यासी वाली सिचुएशन के बावजूद निम्मो ताई चुनाव लड़ने से इंकार कर रही हैं,

दूसरी ओर कांंग्रेस के खाते जाम हैं, तब भी उम्मीदवारी के लिए सिर-फूटौवल हो रही है. वाकई, अजब खेल दिखा रही हो, डैमोक्रेसी की मम्मी जी!

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक पत्रिका ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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