- मुझे केवल संविधान चाहिए, मेरे प्रत्येक पत्र का उत्तर चाहिए, मेरे हिस्से का ‘डेमोक्रेटिक रिपब्लिकन’ कहां है?
समाजविद, पर्यावरणविद, हिन्दू मुस्लिम एकता के पैरोकार तथा दिल्ली विश्व विद्यालय से पीएचडी स्कालर डॉ सम्पूर्णानन्द मल्ल ने राष्ट्रपति मुर्मू को
100 से अधिक पत्र लिखकर देश के अलग-अलग हिस्सों में घटती दर्दनाक घटनाओं को रोकने एवं ठोस कदम उठाने का आग्रह किया था.
किन्तु राष्ट्रपति भवन से उनके किसी भी पत्र का जवाब न मिलने पर बहुत ही दुखी महसूस किया. इनका कहना है कि यदि हमारे बीच के कुछ लोग हिंदू-मुस्लिम नफरत
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फैलाकर सत्ता की भूख मिटाना चाहते हैं तब मैं ‘सत्य’, ‘अहिंसा’ की पूरी ताकत से कहना चाहता हूं कि आज नहीं तो कल भगत सिंह,
‘गांधी,’ अंबेडकर’ का यह ‘महान मुल्क शीशे की तरह टूट जाएगा. सत्ता के भूखे लोग चुनावी पासे फेंक रहे हैं, दाव पर दाव लगा रहे हैं.
इस चुनावी जुए की गोटी है; यूनिटी’, इंटीग्रिटी,’ फ्रेटरनिटी, ‘सॉवरेन्टी’ डेमोक्रेसी’ कॉन्स्टिट्यूशन. इन्होंने बताया है कि
“भारत राष्ट्र रुपी हल” में हिंदू-मुसलमान रूपी दो बैल नधे हैं जिसका एक जुआठा हिंदू और दूसरा मुसलमान खींच रहा है.
जुआठे से एक बैल के हटाने का अर्थ है हल का रुक जाना.” हिंदुस्तान की मिट्टी हिंदू-मुसलमान के रक्त से सनी है, कोई ऐसी मशीनरी नहीं है जो ‘दोनों रक्त सनी मिट्टी’ अलग-अलग कर दे?
हां, अलग-अलग किया जा सकता है यदि हमारे बीच के थोड़े से व्यक्ति हिंदू मुसलमान की आड़ में सत्ता की भूख मिटाने के लिए पाकिस्तान, बांग्लादेश देश जैसे दीवारें खड़ी कर दें.
अब जबकि चुनाव दो माह रह गए हैं. UCC, CAA, लागू करना “चुनाव की निष्पक्ष आत्मा’ की हत्या’ तो है ही “हिंदू-मुस्लिम नफरत” की आग’ भी है.
इसलिए इसे अभी लागू न किया जाए क्योंकि इस वक्त बात करना इस महान मुल्क की डेमोक्रेसी, यूनिटी, इंटीग्रिटी, सॉवरेन्टी के लिए अच्छा नहीं है.
इन्होंने लिखा कि डेमोक्रेसी अब दम तोड़ चुकी है. यह बात मैं इस आधार पर कहता हूं क्योंकि 100 से अधिक पत्रों/ज्ञापनों का कोई उत्तर नहीं.
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि “जवाबदेहीहीन” लोकतंत्र सूखे पेड़ की तरह होता है. जब संसद पर सत्याग्रह करूंगा तब कुछ माननीय को छोड़कर
रेपिस्ट, क्रिमिनल्स, करप्टन से बनी सदन को भगत सिंह के ‘समाजवाद’, गांधी के ‘सत्य’, ‘अहिंसा’, स्वराज’ और अंबेडकर के संविधान का स्मरण दिलाऊंगा.