उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि बैंक ऋण पुनर्गठन के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन वे कोविड-19 महामारी के दौरान किश्तों को स्थगित करने (मोरेटोरियम) की योजना के तहत ईएमई भुगतान टालने के लिए ब्याज पर ब्याज लेकर ईमानदार कर्जदारों को दंडित नहीं कर सकते.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्थगन अवधि के दौरान स्थगित किस्तों पर ब्याज लेने के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान कहा कि ब्याज पर ब्याज लेना, कर्जदारों के लिए एक ‘‘दोहरी मार’’ है.
याचिकाकर्ता गजेंद्र शर्मा की वकील राजीव दत्ता ने कहा कि किश्त स्थगन की अवधि के दौरान भी ब्याज लेने का आरोप लगाया.
उन्होंने कहा, ‘‘आरबीआई यह योजना लाया और हमने सोचा कि हम किश्त स्थगन अवधि के बाद ईएमआई भुगतान करेंगे, बाद में हमें बताया गया कि चक्रवृद्धि ब्याज लिया जाएगा. यह हमारे लिए और भी मुश्किल होगा, क्योंकि हमें ब्याज पर ब्याज देना पड़ेगा.’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘उन्होंने (आरबीआई) बैंकों को बहुत अधिक राहत दी हैं और हमें सच में कोई राहत नहीं दी गई.’’ साथ ही उन्होंने कहा,
‘‘मेरी (याचिकाकर्ता) तरफ से कोई चूक नहीं हुई है और एक योजना का हिस्सा बनने के लिए ब्याज पर ब्याज लेकर हमें दंडित नहीं किया जा सकता.’’
दत्ता ने दावा किया कि भारतीय रिजर्व बैंक एक नियामक है और ‘‘बैंकों का एजेंट नहीं है’’ तथा कर्जदारों को कोविड-19 के दौरान दंडित किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘अब सरकार कह रही है कि ऋणों का पुनर्गठन किया जाएगा. आप पुनर्गठन कीजिए, लेकिन ईमानदार कर्जदारों को दंडित न कीजिए.’’
कॉन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (क्रेडाई) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी ए सुंदरम ने पीठ से कहा कि किश्त स्थगन को कम से कम छह महीने के लिए बढ़ाया जाना चाहिए.
(साभार: PTI भाषा)