डंका तो बज रहा है, पर बदनामी का-आलेख: राजेंद्र शर्मा (PART-2)

लेकिन, बात सिर्फ भारत के अपेक्षाकृत गरीब तथा पिछड़ा होने की ही होती, तब भी गनीमत थी. मोदी राज ने अपने दस साल में देश को उल्टे ही रास्ते पर धकेल दिया है,

जहां उसकी गांठ की पूंजी भी लुटती जा रही है. लंबे और शानदार स्वतंत्रता आंदोलन से निकले भारत ने अपने लिए जिस समावेशी, धर्मनिरपेक्ष, जनतंत्र को अपनाया था,

जनता के लिए जिस तरह की स्वतंत्रताएं व कानूनी समानताएं सुनिश्चित की थीं, उस सब को व्यवस्थित तरीके से खोखला कर के खत्म किया जा रहा है.

इसका नतीजा यह है कि आज दुनिया में भारत का अगर कोई डंका बज रहा है, तो यह बदनामी का डंका है. ऐसे ही डंके के हिस्से के तौर पर,

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की कथित शराब घोटाले के सिलसिले में, चुनाव से ठीक पहले ईडी द्वारा गिरफ्तारी के खिलाफ जर्मनी तथा अमेरिका ने चिंता जताई है.

बेशक, मोदी सरकार ने उनके चिंता जताने पर आपत्ति भी दर्ज कराई है, लेकिन ये सब तो बदनामी का डंका और जोर-जोर से बजने की ही निशानियां हैं.

यह संयोग ही नहीं है कि मोदी राज में लगातार गिरकर, विश्व प्रेस फ्रीडम इंडैक्स पर भारत, 161वें स्थान पर पहुंच चुका है. यहां भी वह 2022 के 150वें स्थान से 11 अंक नीचे फिसल कर पहुंचा है.

समावेशीपन सूचकांक पर भारत 117वें स्थान पर है और वैश्विक जेंडर गैप सूचकांक पर भी, 127 वें स्थान पर है. उधर चुनावी जनतंत्र सूचकांक पर भी

भारत, 108वें स्थान पर है और कुल मिलाकर जनतंत्र सूचकांक पर 10 स्थान नीचे खिसक कर, 51वें स्थान पर चला गया है.

वास्तव में वी-डेम इंस्टीट्यूट ने जो भारत को 2018 से चुनावी तानाशाही घोषित कर रखा है, उसके दायरे में उसने इस साल भारत का सबसे तेजी से तानाशाही की ओर बढ़ना दर्ज किया है.

स्वतंत्रताओं के छीने जाने का आलम यह है कि किसान आंदोलन के ताजा चक्र की पूर्व-संध्या में ही, किसानों का दिल्ली पहुंचना असंभव बनाने के लिए युद्घ

जैसे दमनमारी इंतजामात ही नहीं कर लिए गए, हरियाणा में पूरे आठ जिलों में इंटरनैट पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने के साथ ही

(ऐसी पाबंदी लगाने में भारत पहले ही विश्व गुरु बन चुका है) किसान आंदोलन से जुड़े लोगों तथा इस आंदोलन की खबर दे सकने वाले पत्रकारों तक के

सोशल मीडिया खाते, सरकारी आदेश से बंद करा दिए गए. इससे खीझे एक्स (पहले ट्विटर) ने सारी दुनिया में यह जानकारी प्रसारित कर दी कि भारत सरकार ने

मजबूर कर के उससे उक्त खाते बंद कराए हैं, वह खुद लोगों की स्वतंत्रता के इस दमन के खिलाफ है और उक्त खाते केवल भारत में बंद किए जाएंगे और भारत से बाहर देखे जा सकेंगे.

जाहिर है कि ये सब तो बदनामी के ही डंके हैं. ऐसे ही डंके तब बजते हैं कि जब योरोप, अमेरिका तथा शेष दुनिया के धार्मिक स्वतंत्रताओं तथा अल्पसंख्यकों के

अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के क्षय तथा अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर बढ़ते हमलों पर बार-बार उंगली ही नहीं रखते हैं,

अपनी सरकारों से इसके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग भी करते हैं और अमेरिका जैसी सरकारें, भारत के साथ संवाद में इन चिंताओं को उठाने के वादे भी करती हैं.

विश्व में धार्मिक स्वतंत्रताओं की स्थिति की निगरानी करने वाली अमेरिकी संस्था, यूएससीआईआरएफ ने 2023 की अपनी रिपोर्ट मेें लगातार चौथे साल

अमेरिकी सरकार से आग्रह किया था कि ‘भारत में धर्म या आस्था की स्वतंत्रता के व्यवस्थित, लगातार जारी तथा भीषण उल्लंघनों’ के लिए, उसे ‘विशेष चिंता का देश’ घोषित किया जाए!

ऐसा ही एक और डंका हाल ही में तब बजा था, जब एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे भारत में 128 बुलडोजर कार्रवाइयों में

मुसलमानों को निशाना बनाया गया था और ऐसी सबसे ज्यादा कार्रवाइयां मध्य प्रदेश में ही हुई थीं, जिनकी संख्या 56 थी.

बेशक, मोदी सरकार सच्चाई को छुपाने की कोशिश में, नियमत: ऐसे सभी संकेतकों को नकारती है और तो और, उसने कोविड से मौतों की वास्तविक संख्या को

भी छुपाने की कोशिश की थी और भारत में तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के दसवें हिस्से के बराबर ही मौतें होने का दावा किया था.

लेकिन, इस तरह के खंडनों तथा सच्चाई को छुपाने की कोशिशों से तो, दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा और गिरती ही है.

दूसरी ओर, एक बड़ी ताकत बन जाने की झूठी शान की कीमत भारत को अपने सभी पड़ौसी देशों—पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, नेपाल,

भूटान, श्रीलंका, अफगानिस्तान, ईरान, यहां तक कि मालदीव भी—के साथ रिश्तों के खराब से असहज तक बने रहने के रूप में चुकानी पड़ रही है.

उधर अमेरिका के नेतृत्व में सामराजी ताकतों ने भारत को, समाजवादी चीन की घेराबंदी का औजार बनाने के लिए, उसके साथ जो रणनीतिक रिश्ते बनाए हैं

तथा उसे लेकर क्वॉड व आई-2 यू-2 जैसे जो गुट बनाएं हैं, भारत के जूनियर पार्टनर बनने की सच्चाई को छुपा नहीं सकते हैं.

जिस जी-20 की सफलता का और उससे दुनिया भर में भारत की शान बढ़ने का इतना ढोल पीटा गया, प्रधानमंत्री मोदी का एक महंगा प्रचार ईवेंट भर साबित हुआ है.

इससे भारत के ग्लोबल साउथ यानी विकासशील दुनिया का नेता बनकर उभरने के दावों का झूठ भी उसके फौरन बाद, तभी उजागर हो गया,

जब अमेरिका की वफादारी के चक्कर में भारत ने, क्यूबा में हवाना में हो रही जी-77 शिखर बैठक में, विदेश मंत्री को भेजने की हामी भरने के बाद,

अपने पांव पीछे खींच लिए। यानी डंका जरूर बज रहा है, पर बदनामी का डंका।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक पत्रिका ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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