‘बेशर्म रंग’ की जगह भ्र्ष्टाचार और अत्याचार का विरोध होता तो आज समाज और देश की स्थिति कुछ और होती

तमकुहीराज: समूचे विश्व में भारत अपनी समृद्धता के परचम लहरा रहा है और वैश्विक फलक पर देश के प्रधानमंत्री मोदी ने विराट व्यक्तित्व और कुशल नेतृत्वकर्ता

के रूप में जनता के बीच मजबूत जननेता के रूप में अपनी छवि के तौर पर निर्मित किया है.  विकास के नित नए आयाम गढ़े जा रहे हैं,

जमीन से लेकर अंतरिक्ष तक आम लोगों को बेहतर से बेहतर सुविधा प्रदान करने के लिए लगातार प्रयोग और आविष्कार किये जा रहे हैं.

इसमे कोई दो राय नही है कि इसका प्रत्यक्ष और परोक्ष लाभ आम जनता को मिल भी रहा है. लेकिन सारे विकास और समृद्धता के बावजूद

भ्र्ष्टाचार और बेलगाम नौकरशाही के वजह से आज भी भारी संख्या में कमजोर, गरीब और असहाय लोगो को उनका मिलने वाला हक नहीं मिल पा रहा है.

समाज के सबसे गरीब तबका और समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार नए नए कार्ययोजनाओं के माध्यम से उन तक,

वह हर सुविधा और मौलिक अधिकार पहुँचाने के लिए प्रयासरत है जिसको पाने के वह हकदार हैं. लेकिन भ्र्ष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी पैठ बना चुकी हैं कि इस सिस्टम में सरकारी योजनाओं का लाभ बहुत सारे पात्र लाभार्थियों तक नही पहुंच पा रहा है.

प्रगति और प्रतिस्पर्धा के इस युग में प्रगति की गाथा तो हर एक आदमी के जुबान पर है लेकिन सभी लोगो को बस एक बात ही समझने और परखने की जरूरत है

कि जिस देश के अंदर आज तक मतदाता सूची (वोटर लिस्ट) और राशन कार्ड की पात्रता सूची ही सही नही बन पाई, इसमें अनियमितता और शिकायतों का अंबार भरा पड़ा है.

ऐसे में जिम्मेदारों की सबसे पहली प्राथमिकता क्या होनी चाहिए? उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी का देश के अंदर वन मैन शो का चलचित्र चल रहा है,

कमजोर और दिशाहीन विपक्ष के वजह से यह शो फिलहाल निरन्तरता बनाये रखेगा, ऐसे प्रबल आसार नजर आ रहे हैं.

एक लोक कल्याणकारी देश और राज्य के प्रमुख के तौर पर देश के प्रधानमंत्री और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा वह सारा कुछ किया जा रहा है जो उनको करना चाहिए.

लेकिन इतने सब के बावजूद मुझे जो महसूस हो रहा है वह यह है कि मीडिया की स्वतंत्रता पर आज भी कड़ा पहरा है जिसका

जीता जागता उदाहरण अभी हाल ही में बीबीसी के उस डॉक्यूमेंट्री को देश के अंदर बैन किया जाना है जो गोधरा कांड और गुजरात दंगों से जुड़ी हुई है.

उसमें तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री और वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री मोदी का एक इंटरव्यू भी है. उस डाक्यूमेंट्री में ऐसा क्या है जिसको लेकर उसे बैन कर दिया गया है.?

यह जानने की उत्सुकता सभी को हो रही है, चंद रोज पहले देश की राजधानी के अंदर जामिया और जेएनयू में इसकी स्क्रीनिंग का प्रयास हुआ.

लेकिन प्रशासन के सख्त पहरा के वजह से इसमे सफलता नही मिली और प्रोटेस्ट कर रहे कुछ छात्रों को पुलिस द्वारा डिटेन भी किया गया.

मीडिया की बात हो तो मशहूर जर्नलिस्ट और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजे जा चुके रवीश कुमार के बारे में भी चर्चा किया जाना आवश्यक है.

रवीश कुमार को सरकार विशेष कर मोदी सरकार के खिलाफ पूरे दमदारी के साथ बोलने के लिए जाना जाता है जिसके वजह से एनडीटीवी के शो प्राइम टाइम के खासे दर्शक हैं.

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि यह शो सरकार की कार्यशैली से असहमति रखने वालों के बीच खासा लोकप्रिय था.

मेरे सोच से सरकार की आंखों में किरकिरी की तरह खटकने वाले रवीश कुमार को किनारे लगाने और उनकी जुबान बन्द कराने के लिए

कुछ दिन पहले तक दुनिया के तीसरे नम्बर के धनी व्यक्ति मशहूर भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी ने एनडीटीवी का मालिकाना हक ही खरीद लिया जिसे सीधे तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खरीदने का प्रयास बताया जा रहा है.

चर्चा यह होने लगी कि रवीश कुमार अब क्या करेंगे तो उन्होंने नौकरी करने के बजाय अपने जमीर और अपनी भूमिका को प्राथमिकता दिया.

एनडीटीवी से त्यागपत्र देकर खुद का एक यूट्यूब चैनल लांच कर लिया और अपने अभियान को जारी रखे हुए है.

मीडिया को अपने दौलत से खरीदने का गुमान करने वाले उद्योगपति गौतम अडानी को एनडीटीवी का मालिकाना हक खरीदने के कुछ दिनों बाद ही मीडिया के ताकत का अहसास हो गया है.

यह सही बात है कि पैसे से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है लेकिन सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता है जिसका सही अंदाजा अडानी समूह के वर्तमान हालात को देखकर लगाया जा सकता है.

मीडिया के ताकत का अंदाजा मात्र इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका की एक रिसर्च एजेंसी हिन्डनवर्ग रिसर्च के 24 जनवरी, 2023

को प्रकाशित एक छोटी रिपोर्ट के वजह से दुनिया के तीसरे सबसे बड़े धनी व्यक्ति गौतम अडानी आज की तारीख में 22वें स्थान पर पहुंच चुके हैं.

उनके कम्पनी के शेयर धड़ाम होते चले जा रहे हैं. हिन्डनवर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक अडानी के कम्पनियों के शेयर

अपने बेस प्राइस के सापेक्ष 85 गुना अधिक प्राइस पर अपना शेयर बेचा है और शार्ट सेलर के माध्यम से अपने ग्रोथ को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है.

मीडिया हाउस को खरीदकर अपने हिसाब से अपने जेब मे रखने की कवायद करने वाले धन्नासेठ गौतम अडानी को अब जाकर मीडिया के ताकत का अहसास हो रहा होगा कि मीडिया के एक रिपोर्ट ने उन्हें कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया है?

बात मीडिया की हो तो प्रदेश में मीडिया की दशा और दिशा पर भी चर्चा करना आवश्यक है. प्रदेश के अंदर भी सोनभद्र में

मिड डे मील में रोटी के साथ नमक खाने की रिपोर्ट प्रकाशित करने तथा बलिया में पेपर लीक का मामला प्रकाशित करने वाले पत्रकारों के साथ क्या सलूक हुआ यह बात किसी से छिपा हुआ नहीं है.

कुछ दिन पहले कुशीनगर जनपद में भी एक इलेक्ट्रॉनिक चैनल के पत्रकार द्वारा तरयासुजान थाने की महिला आरक्षियों के डांस का

वीडियो ट्वीट करने के मामले में सार्वजनिक रूप से गलती स्वीकार करने के बाद भी पत्रकार पर मुकदमा दर्ज कराया गया.

तब से जनपद की मीडिया भी पूरी तरह कोमा में है और पत्रकार डरे हुए हैं और यशगान करने वाले अधिकारियों की ख्याति को पुरजोर

तरीके से प्रचारित और प्रसारित कर रहे हैं तथा जिम्मेदार अपना यशगान सुनकर इस तरह आत्ममुग्ध हैं कि पुछिये मत.

यह कहावत है कि साध्य को पाने के लिए साधन दूषित नही होनी चाहिए लेकिन यहां तो आंकड़ा दिखाने के लिए जिस तरह से साधन को दूषित किया जा रहा है उसका कोई सानी नही है.

ऑपरेशन लंगड़ा में मुठभेड़ की कहानी किसी से छिपी नही है. तहसील परिक्षेत्र के एक एनकाउन्टर स्पेशलिस्ट की ख्याति रखने वाले एक अधिकारी का तो पुछिये मत.

दागी और पशु तस्करों से सांठ-गांठ रखने वाले पुलिसकर्मियों को प्रश्रय देकर मुठभेड़ पर मुठभेड़ कराया गया.

लेकिन अगर इन मुठभेड़ों की जांच करा लिया जाय तो असलियत सबके सामने होगी. किन्तु लाख टके की बात है कि यह जांच क्यों और कौन कराएगा?

नवागत जिलाधिकारी की तेज तर्रार कार्यशैली से फिलहाल मातहतों की अंधेरगर्दी पर विराम लगा हुआ है, नहीं तो पहले तहसील के जिम्मेदार अधिकारियों और उनके मातहतों के सह पर धड़ल्ले से अवैध बालू खनन का कार्य चलता था

लेकिन डीएम साहब के सख्ती से इन अबैध कार्यो पर फिलहाल पूरी तरह से रोक लगा हुआ दिख रहा है. कहीं चोरी छिपे हो रहा हो तो यह अलग बात है.

वर्तमान में तमकुहीराज तहसील में अंधेरगर्दी पूरे शबाब पर है और यह मामला डीएम साहब के कानों तक पहुंच गया है और देर सबेर कार्यवाही होगी, इस बात से इनकार नही किया जा सकता है.

तहसील न्यायालय में साहब लोग मन्दिर और मठ के जमीनों पर भी ऐसे-ऐसे फैसले दे रहे हैं जिसका जांच करा लिया जाय तो साहब के कारनामो की कलई खुल जाएगी.

मन्दिर के प्रॉपर्टी का फर्जी ढंग से कराए गए अंतरण के मामले में साधु लोगों द्वारा दी गयी कायमी को मियाद के आधार पर

खारिज कर दिया गया है और दबाव पड़ने पर पुनः पुनर्विलोकन याचिका दाखिल कराया गया है लेकिन मामले को टरकाया जा रहा है.

चुनाव की याचिका में जो फैसले आये उसकी चर्चा तो पुछिये मत कि यह फैसला कैसे और किस तरह से आया है.?

ऐसे-ऐसे फैसले साहब लोगों द्वारा किया गया है जिसका सही ढंग से जांच हो जाये तो योगी सरकार इन साहब लोगों को उनके मूल पदों पर रिवर्ट कर सकती है.

आम लोगों से लेकर सामाजिक संगठन और राजनैतिक दल जिस तरह से मुखर होकर बेशर्म रंग का विरोध करने में अपनी ऊर्जा खपा रहे थे,

काश उसके दसवें हिस्से में भी भ्र्ष्टाचार और अन्याय का प्रतिकार करने में अपनी ऊर्जा लगाते तो आज काफी हद तक भ्र्ष्टाचार पर अंकुश लग चुका होता.

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