BY- THE FIRE TEAM


भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में गरीब ग्रामीण महिलाओं को रसोई गैस खरीदने में मदद करने के लिए उज्ज्वला योजना शुरू की थी।

इस योजना की पहली लाभार्थियों में से एक गुड्डी देवी अब हर दिन ईंधन के रूप में गोबर का उपयोग करती है।

सिर्फ गुड्डू देवी ही नहीं बल्कि भारत की कई और भी महिलाएं जिन्हें उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलिंडर ओर चूल्हा मिला था वे सब आजकल ईंधन के रूप में गोबर या लकड़ियों का इस्तेमाल कर रहीं हैं।

गुड्डी देवी का कहना है, “मुझे बहुत तकलीफ होता है लकड़ीयों को इकट्ठा करने में, गोबर को सुखाकर उसका ईंधन बनाने में। गैस सिलिंडर भरवाने के पैसे नहीं है हमारे पास पहले 520 रुपये में सिलिंडर मिलता था लेकिन अब 770 का है इतना पैसा कहां से लाएंगे हम।”

अभिषेक गुप्ता एक गैस डीलर का कहना है कि उज्ज्वला योजना के तहत उनके यहां सिर्फ 30% लोग ही गैस ले रहे हैं। जबकि नार्मल कनेक्शन वाले 60-70% लोग गैस ले रहे हैं।

देखा जाए तो समस्या पैसों की है जिसके कारण गरीब जनता गैस सिलिंडर नहीं भरवा पा रही है और रोजगार की दिशा में सार्थक कदम भी शायद नहीं उठाए जा रहे हैं।

गोबर के ईंधन से हानिकारक आरसोनिक निकलता है जो हमारे वातारण के लिए काफी ज्यादा हानिकारक है लेकिन मजबूरी वश ये हमारे पारंपरिक ईंधन के स्रोतों में से एक है जिसका इस्तेमाल आज भी गांव क्षेत्र में किया जाता है।

इसके अलावा जिन लाभार्थियों को गैस स्कीम के तहत सिलिंडर मिला भी है उन्हें अभी सब्सिडी नहीं मिलती है। उन्हें सब्सिडी तब मिलना शुरू हिगी जब गैस सिलिंडर की कीमत अदा हो जाएगी।

ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या ये योजना सिर्फ वाहवाही के लिए चलाई गई थी क्योंकि जमीनी स्तर की बात की जाए तो आज भी लगभग 85 प्रतिशत लोग पारंपरिक ईंधन का ही इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि वे लोग इतना महंगा सिलिंडर खरीदने में सक्षम नहीं हैं।


(WITH INOUTS FROM BBC)


 

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