BY- THE FIRE TEAM


देश की सबसे युवा, ईमानदार कम उम्र में सरकारी कार्य प्रणाली का अधिक अनुभव होने के कारण बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ (BBAU) की पूर्व कुलसचिव डॉ सुनीता चंद्रा को अपने शुरुआती प्रशासनिक कैरियर में एक बहुत बड़े संघर्ष का सफर तय करना पड़ा।

डॉ सुनीता चंद्रा के साथ BBAU लखनऊ के पूर्व कुलपति सहित तमाम जातिवादी शिक्षकों ने सिर्फ इसलिए उनके खिलाफ षड्यंत्र किया क्योंकि वह ईमानदारी से अपने कार्य को कर रहीं थीं।

सही को सही और गलत को गलत कहने के कारण उन्हें 5 साल के कार्यकाल में सिर्फ 2 साल ही बड़ी मुश्किल से कार्य कर पाई और पूरे 3 साल उन्होंने अपना कार्यकाल कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते हुए बिताए।

जिसका कारण सिर्फ इतना था कि उन्होंने पूर्व कुलपति प्रो RC सोबती की भ्रष्टाचार में लिप्त रहने की बात नही मानी और उस भ्रष्टाचार को उजागर करने की वजह से उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

पूर्व कुलपति प्रो सोबती ने उन्हें अपनी कुलपति की शक्तियों का गलत तरीके से इस्तेमाल करके विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया था।

BBAU एक्ट के अनुसार कुलपति अपनी इन विशेष शक्तियों का इस्तेमाल विवि में विकट और विषम परिस्थिति में ही कर सकता है। जबकि विवि में ऐसी कोई विकट परिस्थिति नही थी।

डॉ सुनीता चंद्रा ने विवि में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ अकेले लड़ाई लड़ी और इस विवि के इतिहास में पहली बार सीबीआई ने छापा मारा जिसमें रंगे हाथों विवि के एक प्रोफेसर और कर्मचारी को रिश्वत और भ्रष्टाचार के जुर्म में गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था।

डॉ सुनीता चंद्रा भ्रष्टाचार के केस में सीबीआई की लगातार मदद कर रही थीं इस वजह से पूर्व कुलपति सहित तमाम भ्रष्ट मनुवादियों की आंखों की किरकिरी बन चुकी थीं।

डॉ सुनीता चंद्रा का नुकसान उनकी अत्यधिक कार्यकुशलता और बहुजन समाज मे पैदा होने की वजह से हुआ है।

विश्वविद्यालय में जब 2013 से दीक्षांत समारोह हुए तो मंच पर प्रोटोकॉल के तहत कुलसचिव डॉ चंद्रा की कुर्सी होनी चाहिए लेकिन पूर्व कुलपति ने स्टूडेंट्स एक्टिंग बॉडी कुलसचिव को मंच पर जगह तक नही दी।

पूर्व कुलपति ने इतना ही नही उनकी सारी कुलसचिव की पावर को खींच कर क्लर्क लेवल के आफिस के बाबुओं को दे दी । मतलब डॉ चंद्रा सिर्फ नाम मात्र की कुलसचिव थीं, उनके साथ हर मीटिंग में अपराधी किस्म में शिक्षकों के द्वारा बदतमीजी की जाती थी।

पूर्व कुलपति सोबती ने कुलसचिव को आधिकारिक रूप से मिलने वाली सरकारी गाड़ी और उनके घर पर तैनात सुरक्षा कर्मियों को छीन लिया था।

डॉ चंद्रा को हटाने के बाद कुलपति ने अपने चहेते भ्रष्टाचार में बराबर साथ देने वाले प्रोफेसर आर बी राम को अपना कार्यवाहक कुलसचिव बनाया और उसके बाद शुरू हुआ भ्रष्टाचार का असली खेल।

पूर्व कुलपति सहित वर्तमान कार्यवाहक कुलसचिव ने विवि द्वारा फर्जी विज्ञापन के माध्यम से असिस्टेन्ट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, प्रोफेसर की भर्तियों में रिजर्वेशन रोस्टर के विपरीत जाकर भर्तियाँ की। जिसमें वर्तमान कार्यवाहक कुलसचिव ने अपने बेटे और बेटी की नियुक्ति करवा ली।

वर्तमान कार्यवाहक कुलसचिव की इतनी मनमानी के चलते और पूर्व कुलपति सहित उनके गुर्गों ने विवि के सरकारी खजाने को खूब लुटा।

जब पूर्व कुलपति के मनमाने तरीके से विवि के खजाने को लूटा जाने लगा तो वित्त अधिकारी ने आपत्ति जताई जिससे पूर्व कुलपति ने वित्त अधिकारी श्री रमा शंकर को भी निलंबित कर दिया।

विवि को खोखला बनाकर पूर्व कुलपति फुर्र हो गए और आज MHRD पूर्व कुलपति के खिलाफ 1 करोड़ से ज्यादा की रिकवरी का आदेश दे चुका है और वर्तमान कुलसचिव के भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने को लेकर उन्हें पद से विमुक्त करने का भी आदेश जारी कर चुका है लेकिन अभी तक वह कार्यरत हैं।

डॉ सुनीता चंद्रा ने जो तकलीफ सामना किया अगर कोई और होता तो वह मैदान छोड़कर भाग जाता। लेकिन डॉ चंद्रा ने अपने आर्मी पिता की पुत्री होने के साहस दिखाया व हार नही मानी।

उन्होंने लखनऊ हाइकोर्ट की बेंच में अपना केस लड़ा और आज उनकी जीत हुई। इस जीत में वह अकेले शामिल हैं और उनके पति श्री अवधेश कुमार जी का विशेष योगदान हैं जिन्होंने डॉ चंद्रा का साथ पूरा दिया।

डॉ सुनीता चंद्रा बहुजन समाज की वो बहादुर महिला हैं जो बहुजन समाज के कई छात्र छात्राओं की रोल मॉडल और आदर्श हैं। उनका विवि में रहना बहुत ही जरूरी है।

आज कोर्ट ने भी कह दिया है कि डॉ चंद्रा ने बहुत कष्ट सहा है इस नौकरी के कारण। इसलिए उन्हें फिर से मौका मिलना चाहिए।

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