- गोरखपुर जिले के झंगहा थाना क्षेत्र के अमारी गांव के भुआल, 22 साल बाद लौटे अपने घर
भुआल ने बताया कि घर की आपसी उलझन को लेकर वो कई दिनों से परेशान था, अचानक उसने घर छोड़ने का निर्णय लिया.
भुआल ने बताया कि मेरी शादी के कुछ दिन बाद मेरी पत्नी छोड़कर चली गयी जिससे मैं चिंतित था.
तब मैने परदेश जाने का निर्णय लिया, जब घर से निकला तो कमाने के लिए मुज्जफरपुर के प्रेमनारायण के घर पहुँच गया, जहाँ मुझे एक कैदी की तरह काम कराया गया.
जब मेरे शरीर की ताकत कम हो गई और मैं जब बीमार रहने लगा तो वह मुझे मुजफ्फरपुर से गोरखपुर का टिकट कटवा कर ट्रैन में बैठा दिया तब मैं गोरखपुर पहुँचा.
भुआल ने बताया कि वह गोरखपुर का 22 साल बाद नजारा देखने के बाद घर आना मुश्किल था लेकिन बस गांव और शहर का नाम ही मात्र एक सहारा था जिसके कारण वह अपने जन्मभूमि पर पहुँच सका.
भुआल के आने की खबर जैसे ही किसी व्यक्ति के माध्यम से गांव के प्रधान सत्यनाम उर्फ नान्हूपाल को मिली तो उन्होंने
भुआल के चचेरे भाई श्याम बनेला पाल को तत्काल बुलाकर गजपुर चौराहे पर पहुँचे, जब एक दूसरे से आमना सामना हुआ तो
दिल के सारे अरमान जो 22 साल पहले गुजरा था वो पल याद आया और वो आंसुओ के सहारे कुछ कहना चाहता था.
दोनों भाई एक दूसरे को गले पकड़ कर रोने लगे लेकिन भुआल के रोने के बाद क्या हुआ वो और दिल को झकझोर देने वाली खबर आई.
भुआल के भाई ने पत्रकारों को बताया कि भुआल के जाने के बाद भुआल के माता- पिता उनको याद करते-करते अपने प्राण त्याग दिए
लेकिन उस माता-पिता की अपने एकलौते बेटे से मुलाकात नहीं हो पाई. एक बात सोचने वाली है कि जिस प्रेम नारायण ने
इतने दिनों बाद इतनी बड़ी इंसानियत दिखाया है, वह व्यक्ति काश इस डिजिटल युग में एक बार किसी के सहारे से इनके परिवार को सूचना तो दे दिया होता,
नहीं कुछ तो एक माँ को अपने लाल के गम में अपने प्राण तो नहीं त्यागना पड़ता ,
लेकिन क्या कहें, भुआल जब तक घर आया तब तक उनके माता पिता इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे.
अब भुआल के डेढ़ दशक तक न आने के बाद उनके जमीन जायदाद को उनकी ही बहनों ने अपने नाम करा लिया,
लेकिन जब भुआल के छोटे बहनोई को इस बात का पता चला कि भुआल जिन्दा है और घर आया है तो वो तुरन्त आये और उनके साथ रहे.
उन्होंने कहा कि यदि ये आ गए हैं तो ये सारी जमीन-जायदाद इनको हम दिलाने में सहयोग करेंगे.
भुआल के ग्राम प्रधान ने कहा कि भुआल अब अकेला नहीं है. हम इसकी लड़ाई में इसके साथ हैं, मैं इसे इसका हिस्सा दिलाऊंगा.
वहीं भुआल को पाकर उनके चाचा-चाची बहुत खुश हुए. उनके चाचा ने कहा कि मेरे 5 बेटे हैं, अब एक बेटा भुआल भी है. ये भी हमारे साथ ही रहेगा, मैं इसे खिलाऊंगा और जिलाऊंगा.
गांव के लोगों में भुआल को पाकर बहुत खुशी है लेकिन एक कहावत सच साबित हुआ कि अब पछताए होत का, जब चिड़िया चुग गयी खेत
भुआल आये तो मगर वो जिनके आखों के तारे थे, जिनके जीने का सहारा थे आज वो इस दुनिया को छोड़ चले हैं.