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केंद्र के महत्वपूर्ण ‘आधार’ कार्यक्रम और इससे जुड़े 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज (26 सितंबर) महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने माना की आधार आम आदमी की पहचान है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मौलिक अधिकारों पर भी कुछ बैन लग सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति का डेटा किसी को दें तो उसे बताएं। आधार प्राइवेसी में दखल तो है पर जरूरत को भी देखना है। साथ ही 6 महीने से ज्यादा ऑथेंटिकेशन रिकॉर्ड न रखें।

CBSE, NEET में आधार जरूरी नहीं है। इसके आलावा स्कूल में एडमिशन के लिए भी आधार कार्ड जरूरी नहीं है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह भी तय हो कि घुसपैठियों का आधार न बने। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आधार बैंक अकाउंट से लिंक नहीं होगा। साथ ही मोबाइल से आधार को लिंक करना जरूरी नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि 99.76 फीसदी लोगों को सुविधा से वंचित नहीं किया जा सकता है।

जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि आधार समाज के हाशिए वाले वर्ग को ताकत प्रदान करता है और उन्हें एक पहचान देता है, आधार अन्य आईडी प्रमाणों से भी अलग है क्योंकि इसे डुप्लिकेट नहीं किया जा सकता है।

आपको बता दें कि इससे पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 38 दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद 10 मई को मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

अटार्नी जनरल के.के.वेणुगोपाल ने उसके बाद पीठ को बताया था कि 1973 के केसवानंद भारती के ऐतिहासिक मामले के बाद सुनवाई के दिनों के आधार पर यह दूसरा मामला बन गया।

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