Cuttack: राष्ट्रीय आंदोलन में ब्रिटिश सरकार को नाको चने चबवा देने वाले महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस का जीवन प्रत्येक भारतीय को प्रेरणा और ऊर्जा से भर देता है.
इनका जन्म 23 जनवरी, 1894 को कटक (उड़ीसा प्रान्त) में हुआ था जो उस समय बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था.
बंगाल प्रेसीडेंसी को ही 1911 में तीन प्रान्तों में बाँटा गया था पहला बंगाल, दूसरा बिहार और तीसरा उड़ीसा बिहार और उड़ीसा 1935 तक एक साथ थे.
1935 में जब गवर्नमेंट आफ इण्डिया एक्ट लागू हुआ, तो बिहार और उड़ीसा अलग हो गए जबकि वर्मा को भी भारत से अलग कर दिया गया था.
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस 1921 में आईसीएस की परीक्षा में चौथा स्थान और इंग्लिश लेख में प्रथम स्थान प्राप्त किया.
इसी के बाद एक ओर रौलेट एक्ट 1918 लागू हुआ तो दूसरी ओर 1919 में ही जलियाँवाला बाग हत्याकांड घटित हो गया.
इन दोनों घटनाओं के विरोध में राष्ट्रीय आन्दोलन का दबाव बढ़ा तो नेताजी भी आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए अंग्रेजों की नौकरी करने से इन्कार कर दिया.
उस समय भारत में देशबन्धु चितरन्जन दास और गांधी के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस का बड़ा प्रभाव था, नेताजी उसी में शामिल हो गये.
किन्तु नेताजी रूस की 1917 की महान समाजवादी नवम्बर क्रांति से प्रभावित थे. यही वजह है कि समाजवाद की क्रांतिकारी प्रेरणा के कारण साम्राज्यवाद,
दलाल नौकरशाह, पूंजीवाद और सामन्तवाद के विरोधी थे और देश के नौजवानों में अपनी समाजवादी विचारधारा के कारण युवा हृदय सम्राट हो गये थे.
कांग्रेस के अन्दर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और नेहरू दोनों ही वामपन्थी समाजवादी विचारधारा के प्रतिनिधि माने जाते थे.
आज जरूरत है उनके कालजई विचारों को सँजोने तथा अपने जीवन में उतारने की ताकि सदियों तक हमारे बीच बनें रहें.