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  • जमीर बेच कर लोगो ने कब्र की जगह बना ली है जहाँ इंसानियत दफन होती है

एक जमाना था जब पत्रकारों से मिलने के लिए जिले का कलेक्टर और एसपी समय लिया करते थे. आज पत्रकार खुद ही उनके आगे-पीछे घूमते रहते हैं.

इसके पीछे हमारी कोई न कोई स्वार्थ नीति छुपी रहती है, इसकी वजह से आज पत्रकारों की जमीर एक तरह से खूंटी पर टंगी हुई है.

आज अधिकतर पत्रकार खबर के नाम पर प्रशासनिक अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों के पास डेरा डाले, चापलूसी व दलाली करते दिखाई दे जाते हैं.

आप मानो या ना मानो वही अपने को बड़ा पत्रकार साबित कर लेते हैं. चापलूसी करने की आदत उन्हें अपने जमीर से नीचे गिरा देता है.

कहां गई वह कलम की ताक़त जिसमे सच्चाई और ईमानदारी के साथ पत्रकारों की खुद्दारी होती थी. बस, आज के दौर में लगता है कि पत्रकारों को पत्रकारिता के नाम पर अधिकारियों की जी-हजूरी, दलाली व अवैधगिरी ही आती है.

और तो और अधिकारियों को भी यह समझ में आता है कि इन्हें पत्रकारिता के नाम पर बस दलाली आती है. उन्होंने भी इनकी कैटेगिरी बना रखी है.

कई पत्रकार सुबह से शाम तक अपने कार्यक्रमों के आयोजक ही ढूंढते रहते हैं. मेरे कहने का आशय यह है कि पत्रकार अपने जमीर को खूंटी पर न टांगें.

ऐसे भाड़ पत्रकारों की वजह से ही सच्चे पत्रकारों को अपनी पत्रकारिता की कुर्बानी देनी पड़ रही है.

कलम की ताकत है, आंधियां गम की चलेगी संवर जाऊंगा, मैं तो दरिया हूं, समंदर में उतर जाऊंगा, मुझे सूली पर चढ़ाने की जरूरत क्या है? मेरे हाथों से कलम छीन लो मैं मर जाऊंगा

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