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(पिंजौर, हरियाणा पृथ्वीपाल सिंह के सौजन्य)

द्वितीय विश्व युद्ध के समय पूरी दुनिया के देश दो भागों में विभक्त हो कर पूरी ताकत के साथ युद्ध में जूझ रहे थे. उस समय भारत में ब्रिटिश शासन था जो जापान देश के विरुद्ध था.

जापानी फौजें भारत में नागालैंड तक घुस आई थी जिन्होंने कोहिमा पर अपना कब्जा जमा लिया था. जापान की फौजें लगातार तेजी से आगे बढ़ रही थी, यह इस महायुद्ध का एक टर्निंग प्वाइंट था.

इसलिए अंग्रेजों के सामने जापानी फौजियों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए उनकी गरिमा और प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ था, ऐसी कठिन परस्थितियों में अंग्रेजो के द्वारा 1 मार्च, 1943

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को चमार रेजीमेंट को स्थापित किया गया तथा ट्रेनिंग के बाद जापानी फौजियों से भिड़ने के लिए चमार रेजीमेंट को नागालैंड में लगाया गया.

इस बर्फीले, कंटीले, पथरीले, दुर्गम, युद्ध के मैदान में चमार रेजीमेंट के जवानों ने पूरे जोश और बहादुरी के साथ अपनी ताकत झोंक कर घमासान निर्णायक युद्ध लड़ा और दुश्मन की जापानी फौजियों के 7000 हजार जवानों को मार गिराया.

उन्हें 31 मई, 1944 को अपने मृतक जवानों की लाशें एवं हथियार छोड़ कर, कायरों की भांति रात के अन्धेरे में मैदान छोड़कर भागने पर विवश कर दिया था.

इस प्रतिष्ठापूर्ण युद्ध में चमार रेजिमेंट के 917 बहादुर पूर्वज जवान भी शहीद हुए थे जिनके नाम कोहिमा में बने शहीद स्मारक पर अंकित है.

31 मई, 1944 का दिन विश्व के इतिहास में एक यादगार के रूप में सदैव अंकित रहेगा कि भारत की बहादुर “चमार रेजीमेंट” ने इस दिन कोहिमा फतेह किया था.

31 मई, 1944 को जापानी फौज के मेजर जनरल साटो ने मैदान छोड़ने से पहले अपने आदेश में लिखा था कि हम 2 महीनेे तक अपने पूरे साहस और लगन के साथ यह लड़ाई लड़ते रहे.

अब दुखद आंसू बहाने के बजाय हम कोहिमा छोड़ते हैं. इस रेजीमेंट के द्वारा वर्मा और रंगून को भी फतह किया गया था.
चमार रेजीमेंट को जिसमें उस समय श्री के एम करिअप्पा

एक बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर तथा अयूब खान मेजर पद पर थे, जो बाद में भारत आजाद होने पर क्रमश: पहले थल सेनाध्यक्ष बने तथा अयूब खान पाकिस्तान चले गए.

द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति के बाद उस समय का सर्वश्रेष्ठ अवॉर्ड ‘द बैटल ऑनर ऑफ कोहिमा अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया. 18 अगस्त, 1945 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हवाई दुर्घटना में मृत्यु

होने की खबर के बाद, तितर बितर हुई आजाद हिंद फौज के जवानों को वर्मा के रंगून में गिरफ्तार करने हेतु 1946 में चमार रेजीमेंट को लगाया गया.

परंतु भारतीय आजाद हिंद फौज के जवानों को देखते ही चमार रेजीमेंट के देश प्रेमी जवानों ने लड़ने से मना कर दिया और आजाद हिन्द फोज के जवानों से मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध जंग छेड़ दी.

उन्हें जंग में हराकर रंगून पर अपना कब्जा करने के कारण 1946 में चमार रेजीमेंट को अंग्रेजो के द्वारा डिसबैंड कर दिया गया तथा चमार रेजीमेंट के सैनिकों को अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया.

उस समय फौजी टुकड़ी के कमांडर कैप्टन मोहनलाल कुरील को भी बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया, यही आजादी के बाद वर्ष 1952 में सफीपुर (उन्नाव) से विधायक बने.

चमार रेजीमेंट के वीर जवानों को…

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