नरेन्द्र चौहान

BY-नरेंद्र चौहान


मतदान हो गया है। हमने अपने-अपने विवेक से अपने मत का प्रयोग किया। चलिए अब राजनैतिक चश्मा उतारकर इस चुनाव में मासूम गुडिया के मामले को लेकर समीक्षा करें।

मैं जुब्बल कोटखाई क्षेत्र की प्रबुद्व जनता से वहां की मां बहनों से बेटियों से यह सवाल पूछता हूं। क्या गुडिया के सवेंदनशील मामले को वोट की राजनीति के लिए इस्तेमाल करना सही था ? क्या हमारी बहन बेटियां सही मायने में इतनी असुरक्षित हैं कि वह देर शाम को अकेले अपने घर से बाहर नहीं निकल सकती।

दिल पर हाथ रख कर अपनी अंतरआत्मा से पूछ कर इन सवालों के जवाब दीजिए। इसमें कोई दो राय नहीं प्रदेश सरकार की पुलिस व प्रशासनिक अम्ले ने गुड़िया मामले की छानबीन में बेहद गैर जिम्मेदाराना व शर्मनाक भूमिका निभाई। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा की गई बयानबाजी की भी मैं भर्तसना करता हूं।

यही वजह थी कि तब भी हम सभी ने सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर कर विरोध प्रर्दशन किए थे लेकिन याद रहे ये प्रर्दशन व आंदाेलन गैर राजनैतिक थे। हम सभी सरकार की भूमिका से संतुष्ट नहीं थे। इसीलिए मामले की जांच के लिए सीबीआई जांच का दबाव बनाया गया।

प्रदेश क्या देश भर के लोग इस दिल दहलाने वाले प्रकरण से व सरकार की संदेहास्पद भूमिका से वाकिफ हैं। फिर भी भाजपा को गुड़िया के नाम को प्रचार सामग्री बनाने कि क्या जरूरत पड़ गई। महिला सुरक्षा चुनावी मुद्दा हो सकता है पर इस मुद्दे के नाम पर हैवानियत का शिकार हुई एक बच्ची को प्रचार सामग्री बनाना कहां की नैतिकता है। इसलिए मैं गुडिया को चुनाव प्रचार की सामग्री बनाने की कडी निंदा करता हूं।

मैं राष्ट्रीय स्तर के भाजपा के उन नेताओं से पूछना चाहता हूं जिन्होंने गुडिया के साथ हुई ज्यादती को अपनी चुनावी रैलियों में भुनाने का प्रयास किया वे जवाब दें कि यू पी में हर दिन कितनी गुडियों की अस्मत लूट रही है। क्या उनको भी चुनावी विज्ञापनों के रूप में इस्तेमाल करना सही होगा? क्या हैवनियत का शिकार हो रही हमारी बहन बेटियों को नेता अपनी कुर्सी के लिए प्रचार सामग्री बनायेगें।

अरे साहब संवेदना के नाम पर स्वार्थ सिद्व करने की शर्मनाक हरकत करने के बजाय संसद में कानून बनाईए। वहां बहस कीजिए। देश का चुनावी इतिहास उठा लिजिए किस राज्य में ऐसे संगीन अपराध को, किसी मासूम की दर्दनाक हत्या को चुनावी विज्ञापन बना कर वोट बटोरने के लिए इस्तेमाल किया गया।

आप बहुत महान नेता हो देश के कर्णधार हो न जाने आैर भी क्या-क्या हो कृपा कर सोचिए की ऐसे जघन्य अपराधों को चुनावी प्रचार का हिस्सा बना कर आप किस परिपाटी को आगे बढाने का प्रयास कर रहे हो।

हमने फिल्मों में देखा था कि दो संप्रदायों के बीच दंगे फसाद करवाकर वोट बटाेरने की राजनीति होती है। ऐसा चुनाव के दौरान कई बार सुनने को भी मिला। कहीं आने वाले चुनावों में वोट की यह राजनीति हमारी मासूम बहन बेटियों के लिए खतरा व सतासीन सरकार के खिलाफ हथियार बनने का सिलसिला न शुरू हो जाए।

खैर मेरे ये उदगार व्यक्तिगत है मुझे किसी राजनैतिक दल से न कोई विशेष प्रेम है और न ही कोई द्वेष। हां इतना जरूर है राजनीति बहुत गंदी है अब कहीं न कहीं मेरा मन यह स्वीकारने लगा है। हो सकता है कि भाजपा के कुछ मित्रों को मेरे ये विचार बुरे लगे तो जरूर लगे जो मेरे अंतर्मन ने कहा वह लिख दिया ।

चाहता तो मतदान से पहले यह सब लिख कर अपनी व्यथा को जाहिर कर सकता था लेकिन तब मैं अपरोक्ष रूप से कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करता दिखता। अब मत मत पेटियों में बंद है। अब अगर सरकार भाजपा की बनती है तो भी मेरी नजर में भाजपा के उन जन प्रतनिधियों के सर मासूम गुडिया का नाम वोट की राजनीति करने का इल्जाम रहेगा जिन्होंने गुडिया के नाम को अपनी चुनावी सभाओं में इस्तेमाल किया।

खैर अब अगर कोई मेरे इने विचारों को राजनैतिक चश्में से देखे तो देखे या मेरे विचारों को संर्कीण कहे तो कहे मुझे जो लगा मैंने लिखा और आगे भी लिखता रहूंगा।

लेखक स्वतंत्र विचारक हैं और हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।

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