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स्वामी सहजान्द सरस्वती एक ऐसे योद्धा सन्यासी का नाम है जिन्होंने किसानों के ऊपर से सामन्तवाद का बोझ उतारने के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया.

मगर आज तीन करोड़ साधू भारत के मजदूरों, किसानों पर बोझ बने हुए हैं. वे काम नहीं करते मगर सबसे अच्छा पौष्टिक भोजन करते हैं. 

वे मजदूरों, किसानों को मूर्ख बनाकर धन ऐंठते हैं. यहाँ तक कि वे मजदूरों, किसानों को सही आन्दोलन से दूर करके शोषकवर्ग की राह आसान बनाते हैं.

किसानों को सत्संग के नाम पर झूठ, ज्ञान के नाम पर अंधविश्वास, मुक्ति के नाम पर गुलामी, नैतिकता के नाम पर पलायनवाद के दलदल में धँसा रहे हैं.

ये लोग किसानों मजदूरों की कमाई खाकर उन्हें अंधविश्वास में फँसा रहे हैं. हालांकि साधुओं में जो गरीब हैं उनमें थोड़ी नैतिकता बची है मगर ज्यादातर अमीर साधू अनैतिक हैं. जैसे आशाराम बापू, राम रहीम आदि कुछ उदाहरण हैं.

आज सभी धर्मों में स्वामी सहजान्द जैसे साधुओं की जरूरत है जो अन्नदाताओं को अंधविश्वास में न फँसाएं बल्कि शोषण-उत्पीड़न से मुक्त करने के लिए अपनी कुर्बानी देकर सही अर्थों में अपने को नैतिक और ईमानदार सिद्ध करें.

सिख धर्म के साधुओं ने किसान आन्दोलन में लंगर लगाकर एक अच्छा मिशाल पेश किया. इससे सबक लेना चाहिए. ध्यान रहे, सभी धर्मों में अच्छे और बुरे लोग होते हैं.

कृषि प्रधान भारत में स्वामी सहजानन्द सरस्वती का जीवन एक सच्चे साधु के लिए आदर्श है. 

रजनीश भारती (जनवादी किसान सभा)

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