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Gorakhpur: पर्यावरणविद्, समाज के कुशल चितेरे, दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी स्कॉलर तथा ‘पूर्वांचल के गांधी’ कहे जाने वाले डॉ संपूर्णानंद मल्ल

ने खुले तौर पर यह ऐलान किया है कि वह “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राम मंदिर उद्घाटन के नाम पर फैलाए जा रहे अंधविश्वास तथा पाखंड के विरुद्ध सरयू नदी के तट पर सत्याग्रह करेंगे.” 

इन्होंने कहा है कि 5 किलो अनाज पर जीने वाले 80 करोड़ लोगों तथा 22 करोड़ कुपोषितों के पेट के पैसे से पीएम मोदी अयोध्या में जो पाखंड और विश्वास की आधारशिला रख रहे हैं, उसे रोकना होगा.

भारत में मनुष्यता मर रही है, यकीन जानिए इस भारत में वैदिक काल से लेकर बुद्ध, अशोक, पुष्यमित्र शुंग और पांचवी सदी के मध्य तक मंदिर-मस्जिद, मूर्तियों का पाखंड का इतिहास में नहीं है.

इंडोलॉजी, आर्कियोलॉजी इन हिस्ट्री विषय का शोधार्थी होने के नाते मैं यह बताने का प्रयत्न कर पा रहा हूं कि पीएम मोदी जो कुछ अयोध्या में कर रहे हैं

वह जीवन, मनुष्यता, लोकतंत्र तथा संविधान का कत्ल है. मैं महामहीम महोदया से निवेदन करता हूं कि अयोध्या में जो कुछ किया जा रहा है उसे तत्काल रोकिए.

इन्होंने ‘राम’ शब्द का अर्थ बताया कि 100 करोड़ किसान मजदूर राम है. राम को किसान की कुदाल के साथ रहना अच्छा लगता है.

राम श्रम की रोटी खाते हैं, यकीन मानिए राम उस गांधी के कलेजे में है जो मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा स्वप्न में भी नहीं सोचता है. 

परंतु गोडसे जब गोली मारता है तब राम उच्चरित करता है. राम का अर्थ है कलेजा राम, सांस राम का अर्थ है पानी, राम का अर्थ है अनाज जो हम खाकर जीवित रहते हैं,

राम का अर्थ मंदिर नहीं है, राम का अर्थ 22 लाख दीपक जलाना नहीं है. प्रधानमंत्री को स्पष्ट निर्देश दीजिए कि भारत को भारत रहने दें,

अपनी सत्ता की भूख मिटाने के लिए इस महान मुल्क, जो सभ्यता के उदय से इस वसुंधरा पर है, उससे उसका अस्तित्व न छीने. सत्य, अहिंसा, शांति एवं एकता यही तो वह “कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी.”

{To be continued…}

 

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