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बाबा साहब ने कहा था मिशन का काम करना फांसी के फंदे पर चढ़ने से भी ज्यादा कठिन काम है.  क्योंकि, फांसी के फंदे पर चढ़ने से

व्यक्ति एक बार ही मर जाता है किंतु मिशन का काम करने वाला रोज मरता है. उसकी रातों की निंद व दिन का चैन छिन जाता है.

उसे कहीं अपमान तो कहीं सम्मान, कहीं गाली तो कहीं मिठाई, कहीं भोजन तो कहीं उपवास, इन सबको जो सह कर आगे बढ़ता है, वही मिशनरी कहलाता है.

इंसान जीता है, पैसे कमाता है, खाना खाता है और अंत में मर जाता है. जीता इसलिए है ताकि कमा सके. कमाता इसलिए है ताकि खा सके और खाता इसलिए है ताकि जिंदा रह सके. 

लेकिन फिर भी मर जाता है, अगर सिर्फ मरने के डर से खाते हो तो, अभी मर जाओ, मामला खत्म, मेहनत बच जाएगी.

मरना तो सबको एक दिन है ही, नहीं तो, समाज के लिए जीयो, जिंदगी का एक उद्देश्य बनाओ. गुलामी की जंजीरों में जकड़े समाज को आजाद कराओ.

अपना और अपने बच्चों का भरण पोषण तो एक जानवर भी कर लेता है. मेरी नजर में इंसान वही है, जो समाज की भी चिंता करे और समाज

के लिए कार्य भी करे, नहीं तो डूब मरे बेशक, अगर जिंदगी सिर्फ खुद के लिए ही जी रहे हो तो.

 

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