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भारत की संसद के दोनों सदनों-लोकसभा और राज्य सभा से सांसदों के धड़ाधड़ निलंबन का सिलसिला जारी है.

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक विपक्ष के कितने सांसद निलंबित किये जा चुके हैं, इसे लिखने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि जब तक यह पंक्तियाँ आपके पढ़ने में आयेंगी,

तब तक पूरी आशंका है कि वह संख्या बदल चुकी होगी. बहुत संभव है कि इंडिया गठबंधन से जुड़े दलों के सभी के सभी सांसद संसद से बाहर धकेले जा चुके होंगे.

मोदी के न्यू इंडिया की खासियत यही है कि यहाँ आशंकाएं यकीन में ही नहीं बदलती, वे सोचे गए अनिष्ट से भी आगे निकल जाती हैं. संसद के इस सत्र में भी यही हो रहा है.

निलंबित किये जा रहे सांसदों की संख्या हर दिन पिछले दिन की संख्या को पीछे छोड़कर आगे बढ़ रही है. रफ़्तार और जूनून को देखकर ताज्जुब नहीं होगा कि

लोकसभा और राज्यसभा में सवाल उठाने वाले हर सांसद को पूरे सत्र के लिए निलंबित करने के बाद यह पूर्व सांसदों के भूतलक्षी प्रभाव से निलंबन तक भी पहुँच जाए.

मोदी है तो हर आशंका का दोगुनी-तीन गुनी मात्रा के साथ अमल में आना मुमकिन है. क्यों निलंबित हो रहे हैं सांसद?

इसलिए कि वे जिस मकसद के लिये चुने गए हैं, वह काम कर रहे हैं. वे सवाल पूछ रहे हैं. संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष का काम ही नहीं, दायित्व भी होता है कि वह सरकार से सवाल पूछे.

सवाल पूछना, सिर्फ सवाल पूछना नहीं होता-सवाल पूछना, दरअसल किए और अनकिये, घटनाओं और हादसों की जिम्मेदारियों को तय करना होता है.

गलत को गलत कहना और ऐसा करते हुए भविष्य में इस तरह के दोहराव को रोकना होता है. सवाल पूछे जाते हैं, ताकि सरकारों से इस बात का जवाब लिया जाए कि ऐसे सवाल उठने की नौबत क्यों आयी.?

उनसे सार्वजनिक रूप से यह वचन लिया जाए कि उनके द्वारा भविष्य में इस तरह के सवालों की स्थिति उत्पन्न नहीं होने दी जाएगी.

संसदीय लोकतंत्र का मतलब ही यह है, संसदीय लोकतंत्र किसी एक दल के सत्तासीन होने भर का जरिया नहीं है-यह राज में बैठे दल, समूह को पारदर्शी तथा उत्तरदायी बनाने का माध्यम है.

यही वजह है कि इसकी सुन्दरता ताकतवर सरकार में नहीं, मजबूत विपक्ष में निहित होती है. इसमें विपक्ष के नेता को भी विधिवत सम्मान का दर्जा और कैबिनेट मंत्री के समकक्ष पद दिया जाता है.

दुनिया के अनेक देशों में तो महत्वपूर्ण मामलों में किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले सरकार का मुखिया विपक्ष के नेता से मंत्रणा करता है.

संसदीय लोकतंत्र को मानने वाले कई देशों में तो शैडो कैबिनेट-छाया मंत्रिमंडल-भी होता है, जिसके अलग-अलग विभागों के प्रभारी सरकार के संबंधित विभागों पर निगरानी रखते हैं.

वे सब मिलकर इस बात को पक्की करते हैं कि संसद की और इस तरह जनता की सर्वोच्चता बरकरार रहे. कोई भी, भले कितने भी अपार बहुमत वाली सरकार ही क्यों न हो, संसद को दरकिनार करने की कोशिश न करे.

{TO BE CONTINUED…}

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