योगी आदित्यनाथ सरकार के द्वारा हाल ही में लव जिहाद को लेकर पारित किए गए अध्यादेश लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई है.
दाखिल की गई याचिका में बताया गया है कि धर्म परिवर्तन और अंतर विवाह पर उत्तर प्रदेश अध्यादेश किसी को भी गलत तरीके से फंसाने के लिए बुरे तत्वों के हाथों में एक शक्तिशाली हथियार बन सकता है.
Former Supreme Court judge Justice Madan B Lokur criticized the recent Ordinance brought by the Uttar Pradesh Government to criminalize religious conversions by marriage.
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उत्तर प्रदेश कैबिनेट द्वारा धार्मिक रूपांतरण और अंतर विवाह पर लगाए गए अध्यादेश का गलत तरीके से इस्तेमाल लोगों को फंसाने के लिए किया जाएगा और इससे अराजकता और भय पैदा होगा.
इस संबंध में उच्च न्यायालय के दो वकीलों विशाल ठाकरे और अभय सिंह यादव तथा एक कानून शोधकर्ता प्राणेश ने धर्म परिवर्तन अंतर विवाह पर उत्तर प्रदेश के अध्यादेश के खिलाफ
दाखिल याचिका में तर्क देते हुए कहा है कि- इस तरीके का अध्यादेश सार्वजनिक नीति के खिलाफ होने के साथ लोगों के द्वारा संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का भी हनन है.
आपको यहां बताते चलें कि पारित किए गए अध्यादेश के प्रमुख प्रावधानों में से एक धारा तीन है जो इस बात पर प्रतिबंध लगाती है कि कोई भी व्यक्ति प्रलोभन,
जबरदस्ती बल प्रयोग प्रत्येक छात्र प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर एक दूसरे का धर्म परिवर्तन अथवा धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित करने आदि का दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी.
जबकि अध्यादेश की धारा 4 यह बताती है कि कोई भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई-बहन या कोई अन्य व्यक्ति जो उसे संबंधित है अथवा उसके द्वारा रक्त विवाह या गोद लेने से
रूपांतरण की एक प्राथमिकी दर्ज हो सकती है जो धारा 3 के प्रावधानों का उल्लंघन करती है. अपराध के दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को 1 से 5 साल तक की कैद और ₹15000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
इस अध्यादेश का विवादित पहलू यह है कि अंतर धार्मिक विवाह पर इसका प्रभाव पड़ेगा. सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश मदन लोकुर ने भी अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि-
Justice Madan Lokur.
Stating that the judiciary in India has travelled a long distance so far as personal liberty is concerned, former judge of the Supreme Court of India, Justice Madan B. Lokur, observed that the courts now seem to be going in reverse.https://t.co/NFXbHV0bS6
— Indur Chhugani (@IndurChhugani) November 30, 2020
“उत्तर प्रदेश में पारित किया गया यह अध्यादेश दुर्भाग्यपूर्ण है ऐसा इसलिए है क्योंकि यह व्यक्ति की गरिमा, उसे अपना मनपसंद जीवनसाथी चुनने की आजादी तथा मानव अधिकारों का हनन करता है”