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मिली जानकारी के मुताबिक विगत 6 महीनों से अधिक समय से केंद्र के द्वारा पारित किए गए कृषि बिल को लेकर धरने पर बैठे किसान आंदोलन को खुलकर समर्थन देने का आश्वासन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिया है.

तीन कृषि कानूनों को लेकर ममता ने पश्चिम बंगाल के सचिवालय नवान में हुई बैठक के दौरान यह बात कही है. आपको यहां बताते चलें कि ममता बनर्जी एक ऐसी नेता हैं

जिन्होंने केंद्र सरकार के द्वारा पारित किए गए कई विधेयकों का खुलकर विरोध किया है. अब चाहे मुद्दा सीएए और एनआरसी का रहा हो अथवा जीएसटी सहित वर्तमान में चल रहे कृषि कानून का.

इस बैठक में दीदी ने कहा कि उद्योगों को नुकसान हो रहा है. दवाओं पर जीएसटी लगाया जा रहा है, विगत 7 महीनों में केंद्र सरकार ने किसानों से बात करने तक की जहमत तक नहीं उठाई.

मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि यह तीनों काले कृषि कानून वापस लिए जाए. भारतीय किसान यूनियन के महासचिव युद्धवीर सिंह ने ममता बनर्जी से मांग किया है कि-

“वह राज्य में फलों, सब्जियों और दूध उत्पादों के लिए एमएसपी तय करें ताकि वह अन्य राज्यों के लिए मॉडल का काम कर सके.”

पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारियों ने राज्य में घूम-घूम कर वर्तमान बने कृषि कानूनों से होने वाले नुकसान को लोगों के बीच प्रचारित किया.

इसके अतिरिक्त उन्होंने लोगों से अपील भी किया कि यदि वे अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित रखना चाहते हैं तो भाजपा को वोट न दें.

पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका है, यहां धान, दलहन, आलू, चाय मुख्य रूप से उपजाया जाता है. धान की पैदावार के हिसाब से खरीफ के सीजन में वित्तीय वर्ष 2019-2020 में पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर रहा है.

इतनी पैदावार होने के बाद भी किसानों को धान की फसल मात्र ₹1350 में व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है. बंगाल के कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां वर्षभर चावल की खेती होती है बावजूद इसके किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है.

यदि यहां किसानों के हित में एमएसपी तय कर दी जाती है तो संपूर्ण देश में किसानों को इसका लाभ मिलने का मार्ग प्रशस्त हो जाता

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