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विगत कई दिनों से श्रीलंका में चल रहे आर्थिक संकट तथा लोगों के विरोध प्रदर्शन के बाद जिस तरीके से सत्ता परिवर्तन हुआ है, वह कई मामलों में महत्व रखता है.

फिलहाल श्रीलंका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में रानिल विक्रम सिंघे को चुन लिया गया है और उन्होंने शासन प्रणाली में बदलाव लाने का संकल्प लेते हुए देशवासियों से कहा है कि

“वह राजपक्षे परिवार के नहीं बल्कि जनता के मित्र हैं. अब उनके समक्ष देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने, आर्थिक उथल-पुथल को दूर करने तथा बैठे हुए देश को फिर से एकजुट करने की चुनौती है.”

विक्रम सिंघे विगत 45 वर्षों से संसद में हैं और उन्हें राजनीतिक हलकों में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में माना जाता है जो दूरदर्शी नीतियों से अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करने में सक्षम हैं.

आपको बता दें कि जब से श्रीलंका में आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ है तभी से भूतपूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश छोड़कर बाहर जा चुके हैं.

हालांकि विक्रम सिंघे पर राजपक्षे का समर्थक होने का भी आरोप लग रहा है और प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह राजपक्षे के पुराने मित्र हैं ऐसे में इनकी वफादारी संदिग्ध लग रही है.

हालांकि इन सारे आरोपों का विक्रम सिंघे ने खंडन करते हुए कहा कि- “मैं जनता का मित्र हूं, राजपक्षे परिवार का नहीं. मैंने पहले भी पूर्व राष्ट्रपति चंद्रिका कुमार तुंगे

के साथ काम किया है और वह किसी अन्य पार्टी की थीं. किसी पार्टी के राष्ट्रपति के साथ काम करने का मतलब यह कतई नहीं कि मैं उनका मित्र हूं.”

श्रीलंका में चल रहे तोड़फोड़ तथा आगजनी को रोकने के लिए विक्रम सिंघे ने ऐसे कृत्य में लिप्त लोगों को चेतावनी देते हुए कहा कि उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी.

राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री कार्यालय पर जबरन कब्जा करना गैर कानूनी है. हां, इतना जरूर है कि जिन लोगों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन के साथ बातचीत का रास्ता

सरकार के साथ खुला रखा है उनका सदैव स्वागत है. इस प्रवृत्ति को जीवित रख कर के ही हम लोकतंत्र को सच्चे अर्थों में स्थापित कर पाएंगे.

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