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BY-AJAY KUMAR

लोकहितवादी, कर्मयोगी, अपने जीवनकाल में 74 से अधिक संस्थाओं का गठन करने वाले गाडगे बाबा के नाम से विख्यात संत गाडगे महाराज जी मानवता के अग्रदूत थे.

वह न सिर्फ महाराष्ट्र के अपितु हमारे सम्पूर्ण भारत में मानवता एवं जनकल्याण के प्रति समर्पित रहे. गाडगे महाराज का जन्म 23 फरवरी, 1876 को जबकि मृत्यु- 20 दिसंबर, 1956 को हुआ.

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उन्होंने लोकजागृति के लिए बहुत काम किया और लोक कल्याण के लिए कई सारी संस्थाओं, कई अनाथालय एवं विद्यालय की भी स्थापना किया.

वर्तमान साधु संतों और गाडगे बाबा में जमीन आसमान का अंतर था, आजकल के साधु संत जहां विलासितापूर्ण जीवन जीने में लिप्त रहते हैं या वैसा जीवन जीने के लिए लालायित रहते हैं.

वहीं गाडगे बाबा सोचते थे कि पिछड़े और श्रमिकों की स्थिति कैसी है? कितने लोग एक ही समय भोजन करते हैं? कितने लोग भूखे ही मर जाते हैं?

“भूखे को भोजन दो, पशु, पक्षियों को अभयदान” उनके जीवन का आदर्श वाक्य था. जहां रामानंद जी ने
जाति-पाति पूछो नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि को होई अर्थात रामानंद जी ने मध्य युगीन परम्परा में

वर्णव्यवस्था पर आधारित समाज पर प्रहार किया था, सामाजिक सौहार्द पर बल देते हुए उनके अनेक अनुयायियों जैसे रैदास, मलूकदास ,दादू दयाल आदि ने मध्य कालीन भारत में सामाजिक,

राजनीतिक एकता का संदेश दिया, जबकि गाडगे महाराज ने उसी परम्परा का निर्वहन करते हुए मानवता, स्वच्छता एवं शिक्षा के प्रति सभी लोगों को जागरूक किया.

आधुनिक भारत के समाज में बढ़ती विषमता के प्रति वह चिंतित रहते थे. जैसे-भिखारी, अपंग, पागल लोगों की संख्या क्यों बढ़ रही है? इन सबके जीने-मरने की चिंता किसी को क्यों नहीं है?

कैसे लोग पशुओं वाली अवस्था में जीवन जी रहे हैं? मादक पदार्थों का सेवन करने वाले परिवारों की हालत इतनी ख़राब क्यों है? साहूकारों और सत्ताधारकों का जुल्म गांव-गांव में कैसे बढ रहा है?

संत गाडगे महाराज एक ऐसे संत थे जिन्होंने हमेशा सकल समाज की बेहतरी के लिए कार्य किया. कभी भी व्यक्तिगत या पारिवारिक हित के लिए काम नहीं किया.

उन्होंने इंसान और इंसानियत की वकालत की तभी तो उन्होंने कहा कि “देवता किसी मूर्ति या तीर्थ में नहीं है, वो तुम्हारे सामने दरिद्र नारायण के रूप में खड़ा है उसी के प्रेम से सेवा करो!”

उनका मानना था कि मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है, उन्होंने आम जनमानस को संदेश दिया कि भूखों को भोजन, प्यासे को पानी, वस्त्रहीन को वस्त्र, गरीब बालक-बालिकाओं की शिक्षा में मदद, बेरोजगारों को रोजगार,

अंधे, अपंग और रोगियों को उपचार, बेघर लोगों को आसरा, पशु, पक्षियों, मूक प्राणियों को अभयदान, गरीब युवक-युवतियों के विवाह, दुःखी व निराश लोगों को हिम्मत दें.

वह कबीर पंथ की परम्परा में विश्वास रखने के कारण यथार्थवाद पर बल देते थे. उनका संदेश था: “मूर्तिपूजा से दूर रहो और मानवता को मानिए. न तो कर्ज लीजिए और न ही दीजिए.”

गाडगे महाराज की दूरदर्शिता कोई सानी नहीं है। वे अनपढ़ होते हुए भी शिक्षा के महत्व को बखूबी जानते थे तभी तो वे कहा करते थे कि “निरक्षरता अन्याय की जन्मदात्री है.”

घर के बर्तन बेंच दीजिए, हांथ पर खाना लेकर खाइए, पत्नी को कम पैसे वाली साड़ी खरीदिए लेकिन बच्चों को शिक्षा अवश्य दिलाएं.

वे कहते थे कि तीर्थ में देव नहीं है, केवल पैसे का नाश है. जो तीर्थ में जाता है वह पैसे का नाश करता है. गाडगे बाबा एक बहुत बड़े दार्शनिक थे क्योंकि उन्होंने जो भी उपदेश लोगों को दिए वह सब उनके अनुभवजन्य ज्ञान पर आधारित और कसौटी पर कसे हुए होते थे.

शिक्षा और स्वच्छता के प्रति उनका विशेष ध्यान था, यही कारण है कि उन्हें स्वच्छता के समाजशास्त्र का जनक कहा जाता है क्योंकि जन-जन में स्वच्छता के प्रति अलख उन्होंने ही जगाया था.

वे जानते थे कि स्वास्थ्य के रास्ता स्वच्छता के जरिए ही जाता है इसलिए ही वे जिस गांव में प्रवेश कैरते वहां स्वच्छता की शुरुआत कर देते थे.

ऐसे महान व्यक्तित्व की आज 20 दिसंबर, 2020 पुण्यतिथि है जो आजीवन निष्काम कर्म करते रहे. वे लोकोपकारी कार्यों के कारण ही आज भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं, इसीलिए लोग उन्हें गाडगे महाराज कहते हैं.

आधुनिक भारत के इस महामानव को उनके महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर कोटि कोटि नमन एवं श्रद्धांजलि…

 

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