BYTHE FIRE TEAM

बीबीएयू के कुलपति एन.एम.पी. वर्मा की अध्यक्षता में हिंदी विभाग की ओर से विभागाध्यक्ष डॉक्टर सर्वेश सिंह के नेतृत्व में परिचर्चा एवं कविता पाठ का आयोजन पर्यावरण विज्ञान विद्यापीठ सभागार में आज किया गया।

इस आयोजन के मुख्य अतिथि प्रोफेसर राणा प्रताप सिंह थे जोकि पर्यावरण वैज्ञानिक हैं और साथ-ही-साथ एक प्रखर लेखक।

परिचर्चा की शुरुआत विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुई। तत्पश्चात हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ सर्वेश सिंह के द्वारा कविताओं में विज्ञान और साहित्य के समावेश का जो अद्भुत संगम है उस पर प्रकाश डाला गया।

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हिंदी विभाग के द्वारा कराए जा रहे  इस कविता पाठ के आयोजन को लोगों ने एक नया प्रयोग बताते हुए काफी सराहना की।

इस आयोजन का उद्देश्य प्रोफेसर राणा प्रताप सिंह की पुस्तक के द्वितीय संस्करण ‘दहलीज पर खड़ी उम्मीदें’ और 30 वर्ष पहले प्रकाशित ‘हाशिए पर लगे निशान’ (हरियाणा साहित्य अकादमी से सम्मानित) पर परिचर्चा एवं कविता पाठ का आयोजन कर लोगों को उसके आत्मा से मिलाना था।

इस दौरान प्रो.राणा के द्वारा विज्ञान और साहित्य से संबंधित लोगों के मन बैठे भ्रम पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा कि, ‘विज्ञान की पूरक है साहित्य’। हम मानव मस्तिष्क को विज्ञान और साहित्य दोनों ही स्तर पर समझ सकते हैं। आगे बोलते हुए कहा कि, ‘विज्ञान की किताबें ज्यादा बिकती हैं बजाय कविताओं के।’

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इसके पश्चात हिंदी विभाग के अतिथि शिक्षक डॉ. बंशीधर उपाध्याय ने कविता पर इस प्रकार की चर्चा के लिए विभागाध्यक्ष डॉक्टर सर्वेश सिंह का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा, ‘इस समय कविता पर चर्चा बहुत ही कम हो रही है जिसका अर्थ यह है कि मनुष्यता पर चर्चा कम हो रही है। हिंदी कविता का संबंध मानव जीवन के क्रियाकलापों से है इसलिए यह मनुष्यता की चर्चा है।’ डॉ. बंशीधर ने बताया कि, आधुनिक कविताओं में विज्ञान स्वाभाविक ही होगा और इससे सामाजिक रूढ़ियां अवश्य ही टूटेंगी। इस बीच उन्होंने कई कवियों के उद्धरण भी प्रस्तुत किए और बताया कि अच्छा कवि और अच्छा व्यक्ति अहम को त्याग कर ही बना जा सकता है।

Dr. Banshidhar Upadhyay
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परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए डॉ. नलिन रंजन सिंह ने कविता में बढ़ते बाजारवाद के विषय में अपने विचार रखे। इन्होंने पुस्तक के तीनों खंडों का पूर्ण विश्लेषण करते हुए कवि की लोक चेतना और लोक संवेदना की बातें की। इन्होंने डॉ.राणा की पुस्तक के शीर्षकों को सबसे अलग बताते हुए कइयों का जिक्र किया जिनमें पेड़ नहीं बोलेगा, मेरी पाठशाला, बुढ़वा पाकड़ और घायल फूल प्रमुख रहे। इन्होंने शिक्षक की गुणवत्ता पर भी प्रकाश डाला। ‘परिधि पर बैठे लोगों के द्वारा नाभिक पर बमबारी’ किए जाने से संबंधित उद्धरण को भी व्याख्यायित किया।

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इसके पश्चात प्रो. रिपुसोदन जी ने विश्वविद्यालय के कुलगीत की रचना के संबंध में रोचक तथ्य बताए। इन्होंने मनुष्य के हर क्रियाकलाप को एक कविता के रूप में देखने का नजरिया पेश किया। आगे बताया कि प्रकृति से संबंधित जल, नदी, पहाड़ की पीड़ाओं को बड़े ही सरल रूप में राणा जी ने अपनी कविताओं में रखा है। उन्होंने कहा कि इन चिंताओं के समाधान के लिए मैं राणा जी से उनके अगले संस्करण में लाने के लिए आग्रह भी करता हूं। उन्होंने कहा, ‘कविता कहना खतरनाक है, सुनना उससे भी खतरनाक है और समझना सबसे खतरनाक।

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इसी क्रम में विश्वविद्यालय के चीफ़ प्रॉक्टर प्रो. रामचंद्र ने विज्ञान और साहित्य की उत्पत्ति मनुष्य के मस्तिष्क से होनी बताई। उन्होंने एक आदर्श जीवन के नवाचार संवेदना को आवश्यक बताया और कहा, ‘कि हम अपने मस्तिष्क को जितना अधिक प्रयोग करेंगे उतना बेहतर होते जाएंगे।’

इसके पश्चात बीबीएयू के कला संकाय प्रमुख प्रो. अरविंद झा ने कुछ विशेष तथ्यों के बारे में बताया जो बहुत से लोगों को नहीं पता होगा। उन्होंने बताया कि शिव तांडव विषय पर वियना के प्रोफेसर के द्वारा ‘टेस ऑफ काफ़र’ नामक एक विशिष्ट कृति रची गई है। इन्होंने हाशिए पर खड़े लोगों के विषय में चिंता भी व्यक्त की। ‘उत्पीड़ितों का शिक्षा शास्त्र'(पाल फैराइडे) को पढ़ने के लिए लोगों से आग्रह भी किया।

अंत में प्रो. एन. एम.पी. वर्मा ने कवि को एक कोमल हृदय बताते हुए इस आयोजन का समापन किया।

इसके पश्चात विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने अपनी कविता के माध्यम से लोगों के दिलों को जीता।

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