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भारतीय संस्कृति में हर पर्व का अपना विशेष महत्व है क्योंकि यह हमारी भारतीय धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़े रहने के साथ-साथ समाज में आपसी प्रेम और सद्भावना मोहब्बत और अपनापन को भी अधिक मजबूती प्रदान करते हैं.

सनातन संस्कृति में रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के स्नेह एवं विश्वास का अटूट बंधन है. रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है.

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धार्मिक मान्यताओं को देखते हुए यह भी कहना गलत नहीं होगा कि रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई को राखी बांधने के बाद उसके माथे पर कुमकुम या चंदन का तिलक लगाती है, कुछ लोग तिलक के अक्षत का भी इस्तेमाल करते हैं.

दरअसल, तिलक लगाने के पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों प्रकार की मान्यताएं हैं, तिलक को प्यार, सम्मान, पराक्रम और विजय का प्रतीक माना जाता है.

यही वजह है कि जब भी किसी शुभ कार्य के लिए घर से बाहर जाते हैं तो इसे लगाया जाता है. इसके अलावे तिलक लगाने से तार्किक क्षमता में वृद्धि होती है.

बहन की रक्षा करने के लिए शक्ति और तर्कशीलता दोनों जरूरी है. वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो रक्षाबंधन के दिन वह तिलक जो बहन अपने भाई के माथे पर लगाती है उससे व्यक्ति की याददाश्त

और उनको अपनी रक्षा करने के लिए तैयार करती है, आत्मविश्वास में वृद्धि होती है निर्णय करने की क्षमता उत्पन्न होती है इसलिए यह पर्व रक्षाबंधन लेने की क्षमता प्रदान करता है, बौद्धिक माना जाता है.

ऐतिहासिक धरातल पर देखें तो धर्म मजहब से परे यह पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का बंधन है. इसका उदाहरण ऐतिहासिकता के आधार पर कुछ इस तरह मिलता है कि

चित्तौड़ पर गुजरात के शासक बहादुरशाह ने आक्रमण किया तब आत्मरक्षा के लिए रानी कर्णावती ने बादशाह हुमायूं को भाई मानकर राखी भेजी और भाई से बहन की रक्षा करने का आग्रह किया.

बादशाह हुमायूं ने बहन रानी कर्णावती को रक्षा करने का वादा किया और सेना भेजकर बहन की रक्षा पहुंचाई.

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