आज ही के दिन भगत सिंह के साथी और ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोशिएसन’ के सदस्य जतिन दास अपनी 63 दिनों की लम्बी भूख हड़ताल के बाद शहीद हो गए थे.
उस वक्त उनकी आयु महज 25 साल थी, उनकी कई मांगो में से एक प्रमुख मांग यह थी कि क्रांतिकारियो को राजनीतिक बंदी का दर्जा दिया जाय.
आज 92 साल बाद भी यह लड़ाई जारी है क्योंकि आज 13 सितम्बर को भारत की कई जेलों में वर्तमान दौर के क्रान्तिकारी इसी मांग के लिए और शहीद जतिन दास को याद करते हुए 1 दिन की भूख हड़ताल करेंगे.
भीमाकोरेगांव के क्रांतिकारी भी इसमें शामिल हैं, हाल ही में गिरफ्तार स्वतंत्र व निडर पत्रकार रूपेश भी इस भूख हड़ताल में शामिल होने का पहले ही एलान कर चुके हैं.
आज ही के दिन इतिहास की एक और महत्वपूर्ण घटना घटी थी. अमेरिका के न्यू यार्क शहर में स्थित ‘अतिका जेल’ में
ब्लैक पैंथर की अगुवाई में कैदियों के राजनीतिक अधिकारों सहित तमाम मांगो को लेकर काफी समय से आन्दोलन चल रहा था.
अंततः 9 सितम्बर, 1971 को कैदियों ने प्रिज़न गार्डों को बंधक बनाते हुए समूचे जेल पर कब्ज़ा जमा लिया.
4 दिनों तक चली समझौता वार्ता विफल होने के बाद आज ही के दिन, 13 सितम्बर 1971 को अमेरिका की राज्य पुलिस ने जेल पर हमला कर दिया.
इसमें हेलीकाप्टर तक का इस्तेमाल किया गया, कैदी भी बहादुरी से लड़ें. इस खूनी संघर्ष में 10 प्रिजन गार्ड सहित कुल 41 बंदी मारे गए.
आज इनके और अन्य तमाम राजनीतिक बंदियों के साहस को भी सलाम करने का दिन है. अमेरिकी जेल में 16 साल गुजारने वाले लेखक ‘जेरोम वाशिंगटन’ का मशहूर कथन है-
‘जेल में इंसान बने रहने के लिए जेल के नियमों को तोड़ना बहुत जरूरी है’. फासी- वाद के दौर में पूरा देश ही जेलखाना हो जाता है और जेलखाना कत्लगाह.
जिस तरह से फादर स्टेन स्वामी और पांडु नरेटी की मौत जेल में हुई और वरवर राव सहित अनेक राजनीतिक कैदियों को गंभीर बीमारी में भी इलाज नहीं मिल पा रहा है, उससे यह बात सही साबित होती है.
ऐसे में जेरोम वाशिंगटन के इस कथन को विस्तारित करते हुए कहा जाना चाहिए कि फासीवाद के इस दौर में इंसान बने
रहने के लिए यह बेहद जरूरी है कि हम फासीवाद और फासीवादियों के तमाम फरमानों का पुरजोर विरोध करें और उन्हें तोड़े.
जेलों में बंद तमाम राजनीतिक बंदियों को आज सलाम करते हुए मुझे ‘महादेवी वर्मा’ की एक पंक्ति याद आ रही है जो उन्होंने किसी दूसरे सन्दर्भ में कही थी-
”एक दीपक या कुछ चंद दीपक अपनी रोशनी से संसार का अंधियारा तो नहीं मिटा सकते लेकिन यह भी उतना ही अटल सत्य है कि दुनिया का समूचा अन्धकार मिलकर भी एक दीपक का उजाला नहीं खा सकता.”
वरवर राव, साई बाबा, वर्नन गोंजाल्विस, प्रशांत रही और रूपेश कुमार सिंह….. जैसे राजनीतिक बंदी हमारे ऐसे ही दीपक हैं.
(मनीष आज़ाद)