the punekar

(डॉ सईद आलम खान ब्यूरो चीफ, गोरखपुर)

सावित्रीबाई फुले देश की पहचान प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारक तथा आधुनिक मराठी कवयित्री जिन्होंने अपने पति ज्योति राव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया.

इन्हें मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है, सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह जिया जिनके जिंदगी का उद्देश्य था विधवा विवाह को प्रोत्साहित करना, समाज में व्याप्त छुआछूत को मिटाना,

महिलाओं की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करना तथा दलित महिलाओं को शिक्षा से लैश करना ताकि उनके ऊपर होने वाले शोषण, अत्याचार को नियंत्रित किया जा सके.

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अपने इस सामाजिक परिवर्तन की मुहिम चलाने के दौरान सावित्री बाई को एक साथ कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा बताया जाता है कि स्कूल जाया करती थी तो शिक्षा के विरोधी लोग उन पर पत्थर मारते थे,

गंदगी या फेंका करते थे. इन सब से बचने के लिए सावित्री अपने बैग में साड़ी रखा करती थीं. जब वह स्कूल पहुंच जाती थीं तो अपनी साड़ी बदल लेती थीं. महिलाओं के बीच में उनका यह कार्य बहुत ही अधिक प्रेरणा देने का माध्यम बना.

पहले के जमाने में स्त्री शिक्षा को पाप माना जाता था यही वजह है कि लोगों ने स्त्रियों की शिक्षा पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिया. सामाजिक विश्लेषण तो यहां तक बताता है कि स्त्री शिक्षा को लेकर के रूढ़िवादियो

ने कहा कि यदि कोई महिला बहुत अधिक पर पढ़-लिख लेगी तो जिस पुरुष से उसका विवाह होगा वह मर जाएगा. इन सारी विषम परिस्थितियों से लड़ते हुए सावित्रीबाई ने जब स्त्रियों के लिए पुणे में 1848 में स्कूल खोला तो चारों तरफ हाहाकार मच गया.

वास्तविकता यह है कि सावित्रीबाई फुले पूरे देश की महानायिका हैं जिन्होंने हर बिरादरी और धर्म के लिए काम किया. उनके जन्म दिवस पर शत शत नमन…

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