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इसे मोदी जी की अति-विनम्रता कहा जाए या संकोचीपन, इस पर तो बहस हो सकती है, मतभेद हो सकता है. लेकिन, इस पर कोई मनभेद नहीं हो सकता है कि मोदी जी ने देश पर,

डेमोक्रेसी पर, विपक्ष पर बड़ी मेहरबानी की है, जो ‘अब की बार चार सौ पार’ पर निशाना लगाया है. वर्ना अगर अबकी बार पांच सौ पार या सवा पांच सौ पार

बल्कि साढ़े पांच सौ पार भी कर देते, तो कोई मोदी जी का क्या कर लेता? माने हम यह नहीं कह रहे हैं कि मोदी जी पांच सौ पार करा देते, तो भी कोई मुंह नहीं पकड़ लेता.

देश में इतनी डेमोक्रेसी तो अब भी है, यह तो मोदी जी के विरोधी भी मानेंगे कि कम-से-कम पीएम जी जो चाहे बोल सकते हैं.

न भागवत, न चुनाव आयोग, पीएम जी को रोकने वाला कोई नहीं है. रोकने की छोड़िए, टोकने वाला मीडिया भी नहीं है, वह तो मजे में उन्हीं की गोद में खेल रहा है.

पर बात तो कुछ भी बोल डालने वाली है ही नहीं, बात यह है कि पांच सौ पार में ही दिक्कत क्या है, जो मोदी जी चार सौ की गिनती पर ही रुक गए!

वैसे मोदी जी की बात गलत नहीं है. चार सौ पार का नारा कोई उन्होंने या उनके लोगों ने नहीं दिया है, उनके भक्तों ने भी नहीं दिया है.

यह तो पब्लिक के मन की भावना है, जो यह मंत्र बनकर फूट पड़ी है. मोदी जी तो बस इस जन-भावना का सम्मान कर रहे हैं और जनता का दिया मंत्र ही बार-बार दोहरा रहे हैं.

आखिरकार, डेमोक्रेसी है और डेमोक्रेसी में चुनाव से पहले तो वोटर ही भगवान होता है. चुनावी भगवान कहे चार सौ पार, तो मोदी जी उससे हुज्जत थोड़े ही करने जाएंगे.

पर पब्लिक की भावनाओं के मोदी जी के सम्मान का पूरा सम्मान करते हुए भी, हम तो सिर्फ इतना ध्यान दिलाना चाहते हैं कि पब्लिक की भावना का आदर तो होना ही चाहिए, लेकिन उसकी गिनती पर अटकना जरूरी नहीं है.

पब्लिक की भावना पर भरोसा करना तो सही है, पर गिनती पर नहीं. पब्लिक का हिसाब-किताब हमेशा से ही कमजोर रहा है, इस बात को मोदी जी से बेहतर कौन जानता है.

पब्लिक का गणित ठीक होता, तो क्या आज तक दो करोड़ रोजगार सालाना गिनवाने, हरेक खाते में पंद्रह लाख का जमा करवाने, वगैरह की जिद पकड़े नहीं बैठी होती.

चार सौ छोड़िए, दो सौ पार के भी लाले पड़ गए होते. गिनती चार सौ के पार पहुंची है तो इसीलिए कि पब्लिक की याददाश्त से भी ज्यादा गिनती कमजोर है.

जिस पब्लिक की गिनती इतनी कमजोर है, गिनती के लिए उसके भरोसे रहना तो मोदी जी के लिए भी ठीक नहीं है और किसी ने भी आसानी से

पब्लिक का आंकड़ा ठीक कर दिया होता और चार सौ पार को सुधार कर, कम-से-कम पांच सौ पार तो कर ही दिया होता.

पांच सौ-साढ़े पांच सौ पार क्यों नहीं होगा? मोदी जी, विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता हैं या नहीं? मोदी जी की पार्टी, विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है या नहीं?

मोदी जी की पार्टी विश्व की सबसे मालदार पार्टी है कि नहीं? मोदी जी की पार्टी, अरबपतियों की सबसे प्रिय पार्टी है या नहीं.

मोदी जी की पार्टी मीडिया के लिए सबसे ज्यादा बाल-खिलावन पार्टी है या नहीं? मोदी जी ने पब्लिक को पांच-दस साल नहीं, बीस-पचास साल नहीं,

सौ दो सौ साल भी नहीं, पूरे एक हजार साल दूर की सोचना, देखना सिखाया है या नहीं? मोदी जी ने पांच सौ साल लंबे वनवास से, राम जी को लाकर दिखाया है या नहीं?

मोदी जी ने मंदिर-मंदिर घूमकर, पुजारी से बड़ा पुजारी बनकर दिखाया है या नहीं? मोदी जी ने आज जो हो रहा है उसे भूलकर,

पांच साल में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और पच्चीस साल में विकसित भारत बनाने का सब्जबाग दिखाया है या नहीं?

मोदी जी ने पार्लियामेंट पर सेंगोल फहराया है या नहीं? इतने सब के बाद भी क्या पांच सौ पार भी नहीं होगा! पब्लिक की ही गिनती सही, पर गिनती का कोई लॉजिक तो होना चाहिए.

फिर यह भी तो तय है कि हर सीट पर मोदी जी ही चुनाव लड़ेंगे. माने नाम के वास्ते, अलग-अलग सीटों पर अलग-अलग उम्मीदवार होंगे,

पर पब्लिक को तो हर सीट पर मोदी जी को ही चुनना है. जब हर सीट पर पब्लिक को मोदी जी को ही चुनना है, तो जैसे चार सौ पार, वैसे ही पांच सौ पार, प्रॉब्लम क्या है?

फिर अब तो एक अकेला भी नहीं है, शेर अकेला के साथ भी पूरा झुंड है. पाला बदलवा कर लाए गए हैं, वो ऊपर से यानी साथ में पूरा मेला है.

यूपी में भी, बिहार में भी, महाराष्ट्र में भी; हर जगह फिर चार सौ की गिनती पर रुक कर, सौ-डेढ़ सौ सीटें मोदी जी किस के लिए छोड़ देंगे?

संग वाली पार्टियों की चालीस-पचास सीट छोड़ भी दें, तब भी पांच सौ पार. यारी-दोस्ती वाली चालीस-पचास और छोड़ भी दें, तब भी संग वाली पार्टियों के साथ पांच सौ पार.

उम्मीदवार वही और पब्लिक भी वही, तो नतीजा और कुछ क्यों होगा? एक-एक सीट पर जीतेगा तो मोदी ही. क्या कहा पब्लिक हर जगह वही नहीं है?

वह कैसे? अब तो रामलला भी आ गए, मथुरा और काशी भी करीब-करीब आ ही गए. गोरक्षा तो इतनी हो गयी कि किसान और पब्लिक सब हैरान हो गए.

अब्दुल टाइट भी हो गया, क्या अब भी ऐसी राजद्रोही पब्लिक भी होगी, जो महाराज मोदी के रहते किसी और को वोट दे और वोट दे तो दे,

उसका वोट किसी और तक पहुंच भी जाए. कभी नहीं! वैसे भी अगर अलग-अलग जगह पब्लिक अलग हो जाए, पब्लिक का हिसाब सही हो जाए,

वह किसी और को वोट डाल भी दे और वोट किसी और को पहुंच भी जाए, तब तो चार सौ क्या, दो सौ पार करने के भी लाले पड़ जाएंगे.

ऐसे नकारात्मक ख्याल दिल में भी क्यों लाना? सो सारे डर भगाओ और गला फाड़कर चिल्लाओ- अब की बार, पांच सौ पार!

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर ‘ के संपादक हैं।)

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