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                            सोमवार को देहरादून से दिल्ली के लिए उड़ी स्पाइस जेट की फ्लाइट ने इतिहास रच दिया. बायोफयूल से  चलने वाली यह देश की पहली उड़ान भरी गयी. अमेरिका, कनाडा ,ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के बाद एविएशन बायोफ्यूल का परीक्षण करने वाला पहला विकासशील देश भारत बन चुका है .कम उत्सर्जन और बेहतर उड़ान अनुभव कराने वाले बायोफ्यूल को हवाई जहाजों के लिए भविष्य का ईंधन माना जा रहा है.

           दुनिया में हमने विकास के कई ऊंचाइयों को छुआ है और निरंतर नई नई तकनीकों को ईजाद करने की और अग्रसर भी हैं.  किंतु तकनीकी के कारण हमारे दैनिक कार्य सहज हुए हैं तो वहीं दूसरी ओर कई प्रकार की समस्याएं भी उपजी है जैसे- वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण ,जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ई-कचरा इत्यादि . इनहीं सब समस्याओं के निस्तारण के लिए राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई तरह के सम्मेलनों, संगठनों , गोष्ठियों का भी आयोजन किया जा रहा है ताकि बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को कम किया जा सके.

अब हम पेट्रोलियम पदार्थों की जगह बायोफ्यूल की तलाश में लगे हैं .अभी भारत नागरिक उड्डयन क्षेत्र में दिन दूनी रात चौगुनी गति से वृद्धि कर रहा है तथा 2020 तक यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार बन सकता है साथ ही 2030 तक यह क्षेत्र  दुनिया में सिरमौर होगा.

देश का नागरिक विमानन उद्योग अनुमानित 16 अरब डालर का है . ऐसा हमारे देश की मजबूत अर्थव्यवस्था के कारण ही संभव हो सका है. देश की जीडीपी दर में वृद्धि हुई है-तकनीकी ,विज्ञान एवं  प्रौद्योगिकी में सरकार ने निवेश किया है तथा डिजिटल इंडिया बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

             जहां तक पर्यावरण प्रदूषण को कम करने का मुद्दा है तो इस संदर्भ में 2008 से ही कई उड़ानों में बायोफ्यूल का प्रयोग किया जा रहा है .2011 में अमेरिकन सोसायटी फॉर टेस्टिंग द्वारा मान्यता देने के बाद व्यवसाय में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. वर्ष 2050 तक कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में परंपरागत एविएशन की अनुमानित हिस्सेदारी को कम करने नवीन बायोफयूल का प्रयोग करने का  प्रयास किए जा रहे हैं.

इस समय तक 80 परसेंट उड़ानों के दौरान प्रदूषण को कम करने में बायोफ्यूल मददगार हो सकता है .सरकार ने अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है तथा पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर विदेशी निर्भरता को कम करने के लिए काफी प्रयासरत है .भारत अपने विदेशी मुद्रा भंडार का एक बड़ा अनुपात पेट्रोलियम पदार्थों पर खर्च करता है जिसे तत्काल कम करने की जरूरत है .परिवहन विभाग के अंतर्गत सड़कों पर चलने वाले वाहनों पर भी सरकार की नजर है क्योंकि इसके कारण सबसे ज्यादा पर्यावरण प्रदूषण होता है .इसके सुधार के लिए भारत ने बीएस-4 इनजनों की क्षमता को बढ़ाकर  बीएस 6 में बदल दिया है.

इसके पीछे मूल उद्देश्य पर्यावरण प्रदूषण कम करने के अतिरिक्त माल ढुलाई पर आने वाले लागत को भी कम करना है .ई रिक्शा बैटरी संचालित, सीएनजी इंजन, सौर ऊर्जा संयंत्र, एलईडी बल्ब इत्यादि उपकरणों का प्रयोग प्रदूषण को कम करने का एक साधन है क्योंकि हमारा ग्रीन प्लेनेट निरंतर पर्यावरण प्रदूषण के कारण तिका शिकार हो रहा है जिसके हानिकारक प्रभाव के रूप में ग्लेशियरों की पिघलने वाली बर्फ, ग्रीन हाउस गैस के अनुपात में वृद्धि और असमय फसलों का पकना,फल न लगना, झड़ जाना ,एसिड रेन के कारण लोगों को अनेक तरह की स्किन डिजीज होना आदि ऐसे अनेक परिणाम देखें गये हैं जिसके कारण वैज्ञानिक इस समस्या को शॉट आउट करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं.

अभी देश में माननीय प्रधानमंत्री ने स्वचछता अभियान का नारा देकर बहुत सारी योजनाओं को संचालित कर रहे हैं —जैसे घर में शौचालय का निर्माण, कूड़े कचरे को कूड़ेदान में ही फेंकना, कृषि में जैव उर्वरकों का प्रयोग, सिंचाई साधनों का विस्तार, स्प्रिंकलर पद्धति से सिंचाई करना ताकि कम से कम जल का नुकसान हो तथा बेहतर ढंग से हो.अनेक तकनीकी  उपकरणों का प्रयोग जो किसान की उत्पादन क्षमता को बढ़ाएं तथा उन्हें उनकी उपज का अच्छा मूल्य मिले.

प्रत्येक देश की सरकार अपने नागरिकों का जीवन बेहतर बनाने का प्रयास करती है,उनको हर तकनीकी प्रदान करने के लिए प्रतिबध होती है किन्तु यह सब कुछ बिना नागरिकों के सहयोग के संभव नहीं हो सकता. हमें अपने दायित्व को समझना चाहिए तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उज्जवल कल का निर्माण करने के लिए तैयार रहना चाहिए .

 

साभार — दैनिक जागरण और द फायर टीम

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