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एक सर्वेक्षण के अंतर्गत भारत के संदर्भ में यह खुलासा हुआ है कि भारत जिसकी पहचान एक शाकाहारी देश के रूप में रही है, अब यह एक मिथक बन कर रह गया है.

भारतीयों के संदर्भ में पश्चिमी देश ऐसा मानते थे कि भारतीय जिंदा रहने के लिए किसी भी जीव की जान नहीं लेते हैं. किंतु अब वही पश्चिमी जगत के देश यह कह रहे हैं कि-

“भारतीय मांसाहार के मोह जाल में फंसते जा रहे हैं तथा वे मांस खाने की प्रवृत्ति को अपनी आधुनिकता, संपन्नता तथा आहार चुनने की स्वतंत्रता से जोड़कर देखने लगे हैं यहां तक कि उन्हें अपनी गौ माता के मांस भक्षण में भी कोई परहेज नजर नहीं आता है”

वर्ष 2018 में एक अध्ययन के मुताबिक हिंदू सबसे बड़े मांसाहारी वर्ग के रूप में उभरे हैं, वही इंडिया स्पेंड ने अपने विश्लेषण में बताया है कि 80% भारतीय पुरुष और 70% महिलाओं को यदि हर सप्ताह नहीं फिर भी कम से कम एक बार किसी ने किसी मांस का चस्का लग चुका है.

यह अजीबोगरीब है कि शाकाहार की तुलना में भारत में मांसाहार महँगा है फिर भी लोग लोगों का रुझान इधर तेजी से बढ़ रहा है. यह सही है कि भारतीयों में आए के साथ संपन्नता में भी वृद्धि हुई है

किंतु शाकाहार पर मांसाहार के बढ़ते हुए वर्चस्व को लोगों के स्वास्थ्य पर्यावरण की रक्षा के लिए तेजी से बढ़ते हुए खतरे के रूप में भी देखने की जरूरत है.

इसका उदाहरण हम पश्चिमी देशों में आसानी से दिख जाता है. जैसे- जर्मनी में 10% लोग शाकाहारी बन गए हैं तथा वे दूध, दही, मक्खन जैसी चीजों का प्रयोग तेजी से अपने जीवन में उतारने लगे हैं.

शाकाहार अपनाने की जो वजहें हैं:

  • शाकाहार में भी सभी पौष्टिक तत्व उपलब्ध है जो हमें मांसाहार करने से मिलता है
  • शाकाहारी प्रायः दीर्घ जीवी होते हैं शाकाहारियों का पाचन तंत्र ठीक ढंग से कार्य करता है
  • संतुलित शाकाहारी भोजन हमें कई तरह की बीमारियों से बचाता है
  • शाकाहार अपना करके हम अनेक फिजूल खर्च को भी संतुलित कर सकते हैं

 

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