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कुशीनगर: कृषि प्रधान देश के रूप में विदेशों में भारत को नई पहचान दिलाने वाला भारत का किसान आज मौसम की बेरुखी के कारण खून के आंसू रोने को विवश है.

जिस फसल को अपनी कड़ी मेहनत से किसानों ने अपने हाथों से सींचा है अब उसे ही अपनों आंखों के सामने खड़ी फसल को बर्बाद होता देख रहा है, जो असहनीय है.

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उल्लेखनीय है कि वर्षा के महीने के रूप में पहले से अपनी पहचान बनाने वाला जुलाई का महीने किसानों के मुंह पर पानी फेरता हुआ दिखाई दे रहा जिससे किसानों के माथे पर चिन्ता की लकीरें बलवती हो गई हैं.

जुलाई के महीने में बारिश की आस में किसान अपनी खेती कर बैठता है कि बारिश जरुर होगी और फ़सल तैयार हो जायेगी लेकिन प्रकृति के आगे सब लोग बेबस हैं.

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आज जुलाई माह का 16 दिन निकल चूका है किन्तु अभी भी बारिश के आसार नहीं दिख रहे हैं. हालाँकि मौसम विज्ञानियों ने

बारिश होने की बात कही है फिर भी कुछ आशा की किरण नहीं दिख रही है.

बारिश न होने के कारण फसलें सूखने के कागार पर खड़ी हैं जिससे किसानो की रात की नींद तथा दिन का चैन गायब हो गया है.

वहीं सरकार के द्वारा जहॉं नहरों में हेड से लेकर टेल तक पानी पहुंचाने का फरमान थोथा साबित हो रहा है जबकि किसानों के द्वारा मशीनों से सिंचाई करने का प्रयास भी ऊंट के मुँह में जीरा साबित हो रहा है.

ऐसे में फसलों को बचाने की जद्दोजहद में जुटा बेचारा किसान अपनी फरियाद लेकर जाय तो जाय कहां, उसके लिए यक्ष प्रश्न बना हुआ है?

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