लक्ष्मी जी बेचैन थीं, साल का अकेला दिन था ऑफीशियली पूजे जाने का. वैसे दूसरे देवी-देवता तो जब देखो, तब इसके ताने मारते थे कि अब तो साल के सारे दिन उन्हीं की पूजा के हैं.
पर ऑफीशियली तो एक ही दिन था उनके पुजने-पुजाने का, उस इकलौते दिन भी सुबह से दांयी आंख फडक़ रही थी और मन को आशंकाओं से भर रही थी.
दोपहर तक जब महाशय उलूक के भी दर्शन नहीं हुए, तो देवी को सचमुच चिंता होने लगी. साल का इकलौता दिन तो उनका ही नहीं, उलूक का भी था.
उनकी पूजा में उलूक का भी तो हिस्सा था, तब भी जनाब सुबह से गायब हैं. साल का अकेला दिन भी कोई भूल सकता है क्या? पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ.
दोपहर जब निकल चली, तो लक्ष्मी का पारा चढ़ने लगा। ये उलूकवा क्या इस बार दीवाली खोटी ही कराएगा; भुनभुनाते हुए लक्ष्मी जी ने अपने दुमहले की ड्योढ़ी पार की और सर्वेंट्स क्वार्टर की ओर बढ़ चलीं उलूकवा की खोज-खबर लेने.
उलूक महाशय के दरवाजे चढ़ते-चढ़ते लक्ष्मी जी ने हांक लगायी- तबीयत तो ठीक है? अपना तो साल में एक ही दिन है, इसमें गड़बड़ मत होने देना.
और हां, जल्दी से तैयार होकर आओ और तैयार होने में मेरा कुछ हाथ बंटाओ. आज देर नहीं होनी चाहिए, झुटपुटा होते-होते निकल पड़ेेंगे,
तभी तो आधी रात तक पिछली बार से कुछ फालतू दूरी तय कर पाएंगे और ज्यादा घरों पर धनवर्षा कर पाएंगे. उलूक ने देवी के बैठने के लिए आसन बढ़ाते हुए कहा,
देवी नाराज न हों तो कुछ पूछूं? फिर देवी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना कहने लगा. हर साल ही हम यही करते हैं. पर क्या हमने यह जानने की भी कभी कोशिश की है कि
हम दीवाली को जो धनवर्षा का टोटका करते हैं, उससे किसी का कुछ भला हो भी रहा है या नहीं?लक्ष्मी जी को टोटका शब्द बिल्कुल पसंद नहीं आया,
और कोई दिन होता, तो वह उलूक की इस उद्दंडता के लिए अच्छी खबर लेतीं. पर आज के दिन पर नहीं, समझाने की मुद्रा में बोलीं-हम जो करते हैं,
धन वर्षा का टोटका है या वाकई लोगों का कल्याण हो रहा है, इसमें हमें जाने की जरूरत ही क्या है? हम अपना काम कर रहे हैं, हमें अपना काम ईमानदारी से करना चाहिए.
काम का क्या फल होता है, उसकी चिंता करना हमारा काम थोड़े ही है. पर उलूक समझते हुए भी नासमझ बना रहा और फल की चिंता नहीं करने के लिए तैयार नहीं हुआ.
कहने लगा कि भारत वाले आप की हर साल खूब पूजा करते हैं. आप भी अपने हिसाब से दीवाली की रात रौशनी से देख-देखकर, खूब धनवर्षा करती हो.
फिर भी भूख सूचकांक में भारत दुनिया भर में रसातल में पहुंचा हुआ है और उसके बाद भी नीचे से नीचे चलता चला जा रहा है, क्यों?
लक्ष्मी जी ने जरा सख्ती से उसकी बात काट दी-भूख सूचकांक का आंकड़ा तो पढ़/सुन लिया, पर क्या सरकार का यह एलान नहीं सुना कि यह आंकड़ा भारत-विरोधी विदेशी षडयंत्र है.
यहां कोई भूख-गरीबी वगैरह नहीं है और अगर है भी, तो तेजी से गायब हो रही है. आखिरकार, भारत में अमृतकाल चल रहा है.
लक्ष्मी जी ने बात समेटने की कोशिश की, पर उलूक तो किसी और ही मूड में था. कहने लगा कि जरूर आपकी बात ही सही होगी.
{TO BE CONTINUED…}