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नाथूराम गोडसे ने बिड़ला भवन में जब बापू की गोली मारकर हत्या की तो वह रंगे हाथों पकड़ा गया था. गांधी उस समय के देश के सबसे लोकप्रिय और सर्वोच्च नेता थे.

पुलिस नाथूराम गोडसे का‌ वहीं पर इनकाउंटर कर सकती थी, देश में इसके खिलाफ एक आवाज नहीं उठती. नाथूराम के साथ-साथ उस समय पुलिस गांधी जी की

हत्या के आरोप में‌ गिरफ्तार नारायण दत्तात्रेय आप्टे, विष्णु रामकृष्ण करकरे ,दिगंबर रामचंद्र बडगे, मदनलाल पाहवा, नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे,

शंकर किष्टैया, विनायक दामोदर सावरकर और दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे को भी कहीं ले जाकर इनकाउंटर कर देती, देश में इसके खिलाफ एक भी आवाज नहीं उठती.

मगर नाथूराम गोडसे और शेष को अपने बचाव के अधिकार का पालन करने दिया गया और अदालत में अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया.

अदालत की प्रक्रिया एक साल चली और उसमें नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सज़ा हुई और 6 आरोपी विष्णु रामकृष्ण करकरे,

दिगंबर रामचंद्र बडगे, मदनलाल पाहवा, नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे, शंकर किष्टैया और दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे को उम्रकैद तथा इसी न्यायालय प्रक्रिया के तहत विनायक दामोदर सावरकर को बरी किया गया.

इसी देश में इंदिरा गांधी को उनके दो अंगरक्षकों-सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने गोली मार कर उनकी हत्या की थी, उसमें से एक बेअंत सिंह को वहीं पर सुरक्षा कर्मियों द्वारा मार गिराया गया था,

जबकि सतवंत सिंह को गिरफ़्तार कर लिया गया. सतवंत सिंह ने ही इंदिरा गांधी के शरीर पर अपने स्टेन में स्वचालित हथियार से सभी 30 राउंड फायर किए

और‌ कुल 33 गोलियां में से 30 गोलियां इंदिरा गांधी के शरीर में उतार दी थी, पुलिस चाहती तो उसका उसी समय इनकाउंटर कर देती.

मगर सतवंत सिंह को गिरफ्तार किया गया, 5 साल तक अदालत में उसे अपना बचाव करने का अवसर दिया गया. 5 साल बाद सह-साजिशकर्ता केहर सिंह के साथ सतवंत सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई.

राजीव गांधी की हत्या में शामिल छह हत्यारों एजी पेरारिवलन, नलिनी, संतन, वी श्रीहरण उर्फ मुरुगन, रॉबर्ट पायस, जयकुमार और रविचंद्रन उर्फ रवि का भी पुलिस इनकाउंटर कर सकती थी.

मगर उन्हें अदालत में अपने बचाव का अवसर दिया गया, वह दोषी सिद्ध हुए सजा काट कर या सोनिया गांधी के माफ करने के कारण धीरे-धीरे जेल से निकल चुके हैं.

संसद पर हमला हुआ, अफ़ज़ल गुरु का भी पुलिस इनकाउंटर कर के इंस्टंट जस्टिस कर सकती थी मगर अफ़ज़ल गुरु को अदालत में

अपने बचाव का अवसर दिया गया और भले कुछ सवाल उठें हों मगर अफ़ज़ल गुरु को उच्चतम न्यायालय से फांसी की सज़ा हुई.

मुंबई बमब्लास्ट में पकड़े गए याकूब मेमन के साथ भी यही हुआ. नेपाल बॉर्डर पर पकड़ा गया और पुलिस ने उसे भी अदालत में अपने बचाव का अवसर दिया.

उसे भी अदालत ने फांसी दी हालांकि गिरफ्तारी के समय उसका भी इनकाउंटर हो सकता था. सबसे साक्षात उदाहरण मुंबई पर हमला,

अजमल कसाब को सीसीटीवी कैमरों ने तमाम जगहों पर कत्लेआम करते कैच किया, मुंबई पुलिस ने हेमंत करकरे जैसे जांबाज पुलिस अधिकारी को

खोकर भी अजमल कसाब को गिरफ्तार किया उसे अदालत में अपने बचाव का अवसर दिया और अन्ततः उसे भी फांसी की सज़ा हुई.

यह कुछ उदाहरण यह बताने के लिए हैं कि स्वस्थ लोकतंत्र में किसी जुर्म और मुजरिम को दंड देने की एक प्रक्रिया होती है जो उपरोक्त सभी के साथ अपनाई गई है.

दंड देने का काम अदालतों का होता है, फिर चाहे असद हो या विकास दूबे. यदि आप इंस्टेंट जस्टिस के हिमायती हैं तो घबराईए मत

कभी आप भी इस इंस्टेंट जस्टिस की चक्की में पिस सकते हैं, तब आपको एहसास होगा कि बचाव का एक अवसर तो मिलना ही चाहिए था.

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