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एक शाम रेलवे स्टेशन पर एक स्वामी जी के दर्शन हो गए जो ऊंचे, गोरे और तगड़े साधु थे. चेहरा लाल, गेरुए रेशमी कपड़े पहने थे.

पांवों में खड़ाऊं, हाथ में सुनहरी मूठ की छड़ी. साथ एक छोटे साइज़ का किशोर संन्यासी था. उसके हाथ में ट्रांजिस्टर था और वह गुरु को रफ़ी के गाने सुनवा रहा था.

मैंने पूछा,‘स्वामी जी, कहां जाना हो रहा है? स्वामी जी बोले, ‘दिल्ली जा रहे हैं, बच्चा!’ मैंने कहा, ‘स्वामीजी, मेरी काफ़ी उम्र है, आप मुझे ‘बच्चा’ क्यों कहते हैं?

स्वामी जी हंसे और बोले, ‘बच्चा, तुम संसारी लोग होटल में साठ साल के बूढ़े बैरे को ‘छोकरा’ कहते हो न! उसी तरह हम तुम संसारियों को बच्चा कहते हैं.

यह विश्व एक विशाल भोजनालय है जिसमें हम खाने वाले हैं और तुम परोसने वाले हो. इसीलिए हम तुम्हें बच्चा कहते हैं, बुरा मत मानो, संबोधन मात्र है.’

स्वामी जी बात से दिलचस्प लगे. मैं उनके पास बैठ गया. वे भी बेंच पर पालथी मारकर बैठ गए. सेवक को गाना बंद करने के लिए कहा.

कहने लगे, ‘बच्चा, धर्मयुद्ध छिड़ गया है. गोरक्षा-आंदोलन तीव्र हो गया है. दिल्ली में संसद के सामने सत्याग्रह करेंगे.’

मैंने कहा, ‘स्वामीजी, यह आंदोलन किस हेतु चलाया जा रहा है? ’स्वामी जी ने कहा,‘तुम अज्ञानी मालूम होते हो, बच्चा! अरे गौ की रक्षा करना है, गौ हमारी माता है, उसका वध हो रहा है.’

मैंने पूछा, ‘वध कौन कर रहा है?’ वे बोले, ‘विधर्मी कसाई.’ मैंने कहा, ‘उन्हें वध के लिए गौ कौन बेचते हैं? वे आपके सधर्मी गो भक्त ही हैं न?’

स्वामीजी ने कहा, ‘सो तो है. पर वे क्या करें? एक तो गाय व्यर्थ खाती है, दूसरे बेचने से पैसे मिल जाते हैं.’ मैंने कहा, ‘यानी पैसे के लिए माता का जो वध करा दे, वही सच्चा गो-पूजक हुआ!’

स्वामी जी मेरी तरफ़ देखने लगे. बोले, ‘तर्क तो अच्छा कर लेते हो, बच्चा! पर यह तर्क की नहीं, भावना की बात है. इस समय जो हज़ारों गो भक्त आंदोलन कर रहे हैं,

उनमें शायद ही कोई गौ पालता हो पर आंदोलन कर रहे हैं. यह भावना की बात है.’ स्वामी जी से बातचीत का रास्ता खुल चुका था. जमकर बातें हुईं, जिसमें तत्व मंथन हुआ. जो तत्व प्रेमी हैं, उनके लाभार्थ वार्तालाप नीचे दे रहा हूं.

स्वामी जी और बच्चा की बातचीत:

‘स्वामी जी, आप तो गाय का दूध ही पीते होंगे?’ ‘नहीं बच्चा, हम भैंस के दूध का सेवन करते हैं. गाय कम दूध देती है और वह पतला होता है.

भैंस के दूध की बढ़िया गाढ़ी मलाई और रबड़ी बनती है.’ ‘तो क्या सभी गोभक्त भैंस का दूध पीते हैं?’
‘हां, बच्चा, लगभग सभी.’

‘तब तो भैंस की रक्षा हेतु आंदोलन करना चाहिए. भैंस का दूध पीते हैं, मगर माता गौ को कहते हैं. जिसका दूध पिया जाता है, वही तो माता कहलाएगी.’

‘यानी भैंस को हम माता…नहीं बच्चा, तर्क ठीक है, पर भावना दूसरी है.’ ‘स्वामीजी, हर चुनाव के पहले गोभक्ति क्यों ज़ोर पकड़ती है? इस मौसम में कोई ख़ास बात है क्या?’

‘बच्चा, जब चुनाव आता है, तब हमारे नेताओं को गो माता सपने में दर्शन देती है. कहती है बेटा चुनाव आ रहा है. अब मेरी रक्षा का आंदोलन करो, देश की जनता अभी मूर्ख है.

मेरी रक्षा का आंदोलन करके वोट ले लो. बच्चा, कुछ राजनीतिक दलों को गोमाता वोट दिलाती है, जैसे एक दल को बैल वोट दिलाते हैं.

तो ये नेता एकदम आंदोलन छेड़ देते हैं और हम साधुओं को उसमें शामिल कर लेते हैं. हमें भी राजनीति में मज़ा आता है.

बच्चा, तुम हमसे ही पूछ रहे हो. तुम तो कुछ बताओ, तुम कहां जा रहे हो?’ ‘स्वामी जी मैं मनुष्य-रक्षा आंदोलन में जा रहा हूं.’

{To Be Continued…}

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